जब बारिश ज़्यादा हो जाती है,
न जाने क्यों
ये शामें बड़ी बेवफा सी लगने लगती हैं-
कुछ गुजरी कहानियां याद आती हैं,
कुछ छूटने का ग़म होता है,
कुछ बिछुड़ने का दर्द होता है,
कुछ घुटन सी लगती है,
कुछवादे याद आते हैं,
और फिर बिजली के कड़कने के साथ
कुछ टूट सा जाता है!
बारिश का क्या है
अगले दिन ख़त्म हो जाती है,
पर उसका सीलापन
ज़हन को भिगोये रखता है!
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