लचकती डालियाँ, लहराती नदियाँ,
यही तो क़ुदरत का वरदान हैं
झूलते हुए गुल, मस्काती कलियाँ
यही तो मेरी धरती की शान हैं
उड़ते परिंदे, हवाएं बल खातीं
देखते थे हम सीना तान के
झूमती तितली, लहरें बहकतीं
बसंती दिन थे वो भी शान के
छोड़ के वो शान, खो हम गए थे
मोबाइल कहीं, कहीं लैपटॉप है
AC का है युग, क़ुदरत नदारद
नए युग का नया सा ये शौक था
बढती दूरियां, कैसी मजबूरियाँ
इंसान के अंदाज़ सिमट रहे थे
कौन था जानता, किसको थी खबर
मुसीबत से हम बस लिपट रहे थे
कोरोना का प्रकोप, रुकी ज़िंदगी
दुनिया सारी आज परेशान है
बेकार है कार, मचा हा-हाकार
मिटटी में मिल गयी सब शान है
इंसान डर रहा, इंसान मर रहा,
महामारी ने कहाँ किसे छोड़ा
लडखडाये साँस, कोई नहीं पास
दिलों को जाने कितना है तोड़ा
मुश्किल है घड़ी, परेशानी बड़ी
हारनी नहीं है पर हमें यह जंग
मुक़ाबला है करना, नहीं डरना
जिगर में तुम फैलने दो उमंग
सोचना हमें है, विजयी है होना
फासला हमने अब तक तय किया
जीतेंगे हम सुनो, हम में है दम
जीतेगा एक दिन सारा इंडिया
जीतेगा जोश, कोरोना को हरा
हमको लेना होगा सब्र से काम
पास मत आना, नियम तुम मानना
खूबसूरत ही होगा फिर अंजाम
बस यह बात तुम कभी न जाना भूल
क़ुदरत को करते रहना रोज़ नमन
क़ुदरत के बिना हम तो अधूरे हैं
महकता है उसी से बस ये जीवन
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