जब भी मेरे बगीचे में
तेज़ बारिश होती है
और आँधियाँ सायें सायें चलती हैं,
एक न एक जामुन के पेड़ की डाल
दरख़्त से टूटकर गिर ही जाती है
और उसे यूँ ज़मीन पर गिरा हुए देख,
न जाने क्यों आँखों से आंसू आ जाते हैं!
शायद यह डालियाँ
याद दिलाती हैं मुझे
उन टूटते रिश्तों की
जो ज़रा सी मुश्किलें आने पर
बिखरकर गिर जाते हैं...
यह एक विपदा आई,
और यह एक रिश्ता झड़ा...
यह दूसरी अड़चन आई,
और यह रिश्ता टूट गया...
क्यों टूटती हैं यह डालें इतनी आसानी से?
क्या यह कोई क़ुदरत का नियम है?
या फिर यह डालें खोखली हो गयी हैं?
या फिर इन दरख्तों की जड़ ही
अन्दर से कमज़ोर हो गयी है?
टूटने का कारण सोचने चली थी,
कि अचानक नज़र उस डाल पर फिर पड़ गयी,
जो क़ुदरत को लाचार नज़रों से देख रही थी-
कभी उससे हाथ जोड़कर याचना कर रही थी,
कभी उसकी सिसकती हुई आवाज़ सुनाई आ रही थी,
कभी वो चीख रही थी, कभी चिल्ला रही थी,
“ऐ क़ुदरत! मुझे एक बार फिर से मिला दो न
मेरे उस बड़े से दरख़्त से!”
मुझे पता था
क़ुदरत ख़ुद ही लाचार है-
पता नहीं उसे वो चीखें सुनाई भी दे रही थीं या नहीं,
पर मैं अबस सी भाग गयी घर के भीतर
कि नहीं देखी गयी मुझसे उस डाल की
बेचारगी और बेबसी!
नीलम सक्सेना चंद्रा,
RB V 585 /A, D Block, Sangam Park Railway Officer’s Colony,
Pune 411001
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