ऐ दोस्त!
क्या तुमको अच्छा नहीं लगता
जब कोयल मधुर सा गीत गाती है
और हर दिल को लुभाती है?
जब सुबह की केसरिया किरण
सारे जग को महकाती है?
जब लहराती हवाएं लचकती सी चलती हैं
और मुस्कुराते दरख्तों से टकराती हैं?
जब परिंदे उड़ान भरते हैं
और हमारी भी उम्मीदें आसमान छू जाती हैं?
कितना कुछ है क़ुदरत के पास
हमें देने के लिए, हमें सिखाने के लिए?
क्यों हम उसी क़ुदरत से खेलते हैं
और उसके नियमों को तोड़ते हैं?
उसकी तो वंदना करनी होगी,
लेनी होगी कसम हम सभी को
कि मिला लेंगे हम सब हाथ
उस कोयल से, उस किरण से,
उन दरख्तों से, उन परिंदों से
और हम सब अब चलेंगे साथ-साथ!
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