हर ढलती हुई शाम कुछ कह जाती है ,
आने वाले कल का आगाज़ कर जाती है ,
साँझ तो है मिलन दो- पहर का ,
इक से जुदाई दूजे से मिलन कराती है ,
जाते-जाते यूँ तो ये उदास कर जाती है,
पर अगली सुबह फिर से उमंग भर जाती है ,
हर सिक्के के होते है दो पहलू,
उगता-डूबता सूरज इक जैसा दिखलाती है ,
हर ढलती हुई शाम कुछ कह जाती है. . .
घर लौट जाने का पैगाम ये देती है ,
अपनों की याद दिला जाती है,
दिन भर की तपन के बाद,
शीतल ये पल में कर जाती है,
हर ढलती हुई शाम कुछ कह जाती है. . .
यूँ तो रेत दिन में तप जाती है ,
और साँझ शीतल चादर ओढा जाती है,
हर पल इस उधेड़ बुन भरे जीवन में,
आराम के दो पल दे जाती है ,
हर ढलती हुई शाम कुछ कह जाती है. . .
अफ़सोस कर रहे की ये दिन समाप्त कर जाती है.
पर ये तो नए दिन की राह दिखलाती है ,
हर दुःख के बाद है सुख की बारी ,
रह-रह कर सबक ये सिखला जाती है,
हर ढलती हुई शाम कुछ कह जाती है
By:-Deepika Gahlot (मुस्कान)
Sr. HR professional | Blogger | Writer | Speaker
Pune .
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