तुम्हारे बनाए हर किस्से को ! न जाने क्यों आज इस कदर संवार रहा हूं !!! जैसे गुज़रे हुए उन रातों की यादों के सहारे ! मैं फिर आज अपनी एक रात गुज़ार रहा हूं !! तुम्हारी याद तो मुझे हर वक्त चली आती है ! उन यादों को जी कर भी एक याद बना रहा हूं !! मेरे दिल की ख्वाहिश ही है तेरे दिल को पाने की ! इसे भी मंज़िल जल्द मिले ये रोज़ मना रहा हूं !! ख्वाबों से भरे इन किस्से को ! मैं खुद को आज इस कदर सुना रहा हूं !! जैसे बरसो से सुखी किसी रेत की प्यास को ! जल की दो चार बूंदों से से बुझा रहा हूं !! मुझे तेरे दिल की बात ,वो गुजरी रात सुहानी लगती है ! तुम न हो तो पूनम वाली रात बेगानी लगती है ! तेरा जिक्र हो जाते ही दिल जज़्बाती हो जाता है ! तेरे दिल को पाने की उन ख्वाबों में खो जाता है !! तेरे प्यार की उन एहसासों को ! मैं आज इस कदर जगा रहा हूं !! जैसे बरसो से हताश हुए किसी सफर के राही को ! मंज़िल की चाह में उसे रोज भागा रहा हूं !!