कविता : उभरी
मैं एक नारी हूँ
कई रूपों में उभरी
एक महाशक्ति हूँ
एक माँ के रूप में
जिम्मेदारी के रूप में खड़ी हूँ
एक बेटी के रूप में
फर्ज लेकर खड़ी हूँ
मैं एक नारी हूँ।
हिम्मत से हारी नहीं
कई रूपों में उभरी
एक गीता हूँ
मैं बेबस की मारी नहीं
अपने सपनों को पूरा कर दिखाने के लिए लड़ी हूँ
मैं एक नारी हूँ
जीवन की उड़ान से हमेशा
भारी हूँ।
धन्यवाद काजल साह स्वरचित
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