अपने परों से उड़ना चाहती हूँ इस खूबसूरत संसार को मैं भी देखना चाहती हूँ कुछ ख्वायिश मेरे भी है उसे मैं भी पूरा करना चाहती हूँ। लोगों से अब डर नहीं है मुझे अब मैं अपनी उड़ान भरना चाहती हूँ बिखरे हर पलों को मैं जोड़ना चाहती हूँ अपनी साहस, हिम्मत से अपनी पहचान बनाना चाहती हूँ। मेरे मन की व्यर्था को किसने जाना है? मुझे खुली किताबों की तरह किसने पढ़ा है? मेरे अस्तित्व को किसने पहचान है? एक सच्चे मित्र की तरह किसने मेरा साथ दिया है? हर मोड़ पर किसने मुझे संभाला है? बिखर चुकी थी मैं लेकिन अब मैं उभरूंगी मैं। धन्यवाद : काजल साह :स्वरचित