प्रकृति का ये सूरत
जिससे देखकर मैं
बन जाती हूँ, मुरत
रिमझिम वर्षा से
मन हो जाता हरपल हर्षित
बागो के खिले पुष्प
लगते है बड़े मनोहारी
बरसात है, मौसमों की रानी
जिससे पूरा जगत हो जाती हरियाली
बारिश में खिले
गेंदा, बालराम, सूरजमुखी
मन हो जाता बारम्बार लुब्ध
अभ्र में छाए शक्रचाप से
सबका मन हो जाता प्रफुल्लित
पखेरू के मधुर सुर से
पूरा जगत हो जाता मधुर
प्रकृति की सुन्दरता से
मैं हो जाती स्तम्भ
स्वर्णिम सी आभा छाई
हरे - हरे तरु से
सूरज की लालिमा से
मन हर बार मुस्कुराये।
प्रकृति को हमें बचाना है
हर स्थान पर वृक्षों
लगाना है
हर प्रदूषण को मिटाना है
प्रकृति को प्रदूषण मुक्त
बनाना है
जल प्रदूषण, मिट्टी प्रदूषण सारे
पर्यावरणीय समस्याओं को
जड़ से मिटाना
अब हमें प्रकृति को
सौंदर्य बनाना है।
धन्यवाद
काजल साह : स्वरचित
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