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25/02/2025 Garima Mishra Mystery Views 114 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
ईश्वर सत्य या भ्रम

मेरे दिमाग मे एक बात हमेशा बनी रहती है, एक प्रश्न हमेशा उठता रहता है की अगर ईश्वर है तो कहा है? कोई बोलता है ब्रह्मांड मे है, तो कोई बोलता है पाताल में है. कोई बोलता है दूसरे ग्रह पर है , पर अब तक पता नही चला कहा है. जब हम किसी संकट या किसी ऐसी विकट स्थिति मे होते है जिसमे हम बहुत परेशान होते है तो कैसे अपनी मनोदशा को शांत करे ? अगर आपका उत्तर है की अपनो से! तो मैं पूछती हुं क्या अपने हमेशा हर विकट स्थिति मे हमारे साथ रह सकते है, चाहे वो कोई भी हो? और यदि आपका उत्तर है कि माता- पिता.. तो मैं पूछती हूँ कि पहले भी वे अपना सारा जीवन सिर्फ विकट परिस्थितियों से जूझते आये हैं सिर्फ हमारे लिए तो ऐसे मे उन्हे फिर से परेशान करना कहा की बुद्धिमानी है. तो फिर? अब? किससे पूछे? तो मेरे दिमाग मे बस एक ही आवाज़ उठती है , हे भगवान! अब क्या होगा...... बस यही बोलते ही मेरे मन मे उससे जुड़ी सारी घटनाएं दिमाग में आने लगेगी ,जो मैं पहले भी कर चुकी हूं, जो मैं जानती हूं और कब क्या करना चाहिए यह सब तो हम हमेशा यूट्यूब से या कहीं से भी "अमृतवाणी" सुन लेते हैं तो उसे मार्ग मिल जाता है कि अब क्या करना चाहिए। मैं बताती हूं आखिर में क्या बोलना चाहती हूं ईश्वर एक ऐसी सकारात्मक अदृश्य ऊर्जा है ,जो हमें हमेशा उचित चीजों का स्मरण कराती है। हमारे मन, भाव को कैसे नियंत्रण में रखना है, यह हमने खुद ही इस शब्द के द्वारा सीख लिया है !अब आप पूछेंगे कि "ईश्वर" शब्द से हम अपने आप को कैसे नियंत्रण में रख सकते हैं ?मैं बताती हूं -जब आप या कोई और किसी से भी प्रतिशोध लेने की सोचते हैं तो रुक जाते हैं, भले ही सामने वाले ने आपके साथ बुरा किया हो- तब आपके मन में एक विचार आता है कि, उसने किया तो किया मेरे साथ गलत पर यदि मैं भी उसके साथ बुरा करती हूं या करता हूं तो हम दोनों में फर्क क्या रह जाएगा। और जब आप किसी के साथ गलत करने जाते हो तो इस भय से रुक जाते हो कि भले ही पृथ्वी लोक पर मुझे कोई नहीं देख रहा है, पर ऊपर वाला यानी की सर्वव्यापी ,सर्वशक्तिमान ईश्वर तो देख रहा है और वह मुझे अपने कर्मों का दंड आवश्यक देगा । अब आप ही बताइए ईश्वर की वजह से ही तो हम अपने मन, भावनाओं और क्रोध इत्यादि को अपने नियंत्रण में कर पा रहे हैं या नहीं? इससे जुड़ा एक लाइन याद आ गया, "सब कुछ मुझसे आता है ,मुझ में रहता है ,और मुझ में ही वापस चला जाता है ",यह ब्रह्मांडीय सत्य है "किसी को डर है ईश्वर सब देख रहा है तो किसी को भरोसा है ईश्वर सब देख रहा है " "ईश्वर" को हमने एक ऐसी अवधारणा दे दी है जिससे मन को शुद्धता प्राप्त होती है ,आप अपनों के बिना परेशान किए भी, अपने दुख का ग्रंथ ईश्वर के सामने खोलकर बैठ सकते हैं । कई लोग सोचते हैं कि "ईश्वर से हर संकट दूर हो जाता है ऐसा गलत है" और मैं बोलती हूं कि आप बिल्कुल सही कह रहे हैं। ईश्वर से हर विकट परिस्थितियों दूर नहीं होती अपीतु ईश्वर हमें उस स्थिति से जूझने के लिए कई मार्ग खोल देते हैं ,अब आपको उसे मार्ग को पहचानना है ,और किस पर चलना है यह आपका चयन होगा। आज भी कई ऐसे मनुष्य हैं जो अपने आर्थिक स्थिति के कारण, बहुत मजबूर होने के कारण दूसरों से अपने ऊपर हो रहे अत्याचार को झेल रहे हैं । बस इसी आस में की " वहां देर है और अंधेर नहीं "यानी ईश्वर, सब देख रहा है, हमारी बातें जरूर सुनेगा और हमें इस मुसीबत से अवश्य निकलेगा ,भले ही देर हो पर अंधेर तो नहीं । तो ईश्वर हमें मुसीबत सहने और उससे निकालने की भी ऊर्जा प्रदान करते हैं। , कई लोग ऐसे भी होते हैं जो अपनी मनोदशा -किसी को भी बात नहीं सकते, या यूं कहीं कभी-कभी वे सोचते हैं कि बताना व्यर्थ है ,जब किसी को समझना ही नहीं है । उनके दिमाग में क्या चल रहा है ,वह लोग ऐसा क्यों कर बैठते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए ,परंतु उनके आसपास के लोगों को उसके मन की व्यथा से ज्यादा, हुए नुकसान की चिंता रहती है। फिर वे लोग अपनी बात रखी नहीं पाते हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया या यू कहे की जानबूझकर नहीं किया पर गलती से हो गया । ऐसे मनुष्यों को जब कोई कुछ भी बोल देता है तो, बहुत आसहज और पीड़ा का अनुभव होता है , तब उन्हें पता चलता है कि यदि आपने वह गलती जानबूझकर भी ना कि हो, तो भी आपको सुनना ही पड़ेगा चाहे वह कोई भी हो । तब ऐसे मनुष्य सिर्फ ईश्वर को ही अपना सब कुछ साझा करके ,अपने आंसू को बहा कर अपने दिल को हल्का कर लेते हैं। इस उम्मीद से की सामने वाले को कभी- ना-कभी समझ में तो आएगा। और यह बात तो स्वयं भी जानते हैं कि, वह दिन कभी नहीं आएगा बस अपने गम ,दुख, तकलीफ को दूर करने के लिए ,सब कुछ समय पर छोड़ देते हैं और बोलते भी हैं ना की- "वक्त के साथ सब कुछ भूल जाते हैं चाहे वह दुख हो या फिर कुछ और वक्त सब भुला देती है " इस पृथ्वी पर हर मनुष्य अपनी आधी से ज्यादा जिंदगी में आए बाधा को केवल और केवल ईश्वर द्वारा ही दूर करता है । नहीं तो मनुष्य अपने जीने की उम्मीद भी छोड़ देता । "जब सीता माता को रावण पकड़ कर ले गया और वह कई दिनों तक राक्षसों के घेरे में ही रही परंतु उन्होंने कभी भी आस नहीं छोड़ी इस बात की- की उनके प्रभु श्री राम आएंगे और उन्हें वापस लेकर जाएंगे और हुआ भी ऐसा ही प्रभु श्री राम उन्हें ससम्मान सहित वापस ले गए । यदि रात आई है तो दिन भी आएगा" इससे मुझे हरिवंश राय बच्चन जी की कविता याद आ गई, "‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ नीड़ का नर्माण फिर- फिर , नेह का आह्वान फिर- फिर " ईश्वर पर भरोसा रखना उनके दिखाए हुए मार्ग पर चलना मनुष्य के जीवन की सबसे बड़ी सफलता होती है ,इसलिए जब भी विकट परिस्थिति आए तो यह सोचकर मन को मना लेना चाहिए कि ईश्वर हमारे साथ है,आज दुख है तो कल सुख जरूर होगा और उससे कैसे निपटना है ये सोचना चाहिए ना कि दुखी होकर उदास होकर बैठ जाना चाहिए।

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