जन्नत की सैर में
मैंने किसी फरिश्ते को देखा है
पैर में छाले लेकर
किसी मजदूर को
चलते देखा है
दुख, दर्द, पीड़ा, व्यथा
सारे गमों को सहकर
अपने बच्चों के लिए
एक बाप को
हमेशा हँसते देखा है
जन्नत की सैर में
रब के रूप में
मैंने अपने पापा को देखा है।
सुख, चैन, सपने, नींद
एक पिता सब त्याग देते है
खुद ना खाकर
हमें भर पेट
खिलाते है
अपने कंधो पर बैठाकर
पूरी जहान घुमाते है
मेरे हर सपनों को
उड़ना सिखाते है
जन्नत की सैर में
मेरे पापा ही मेरे अभिमान कहलाते है।
धन्यवाद : काजल साह :स्वरचित
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