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07/01/2024 Kajal sah Corruption Views 373 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
कविता : यह मेरा देश नहीं

मेरे देश का हर कोना भर गया है बर्बर जानवरों से और ये अब कुतर रहे हैं अपने बड़े दांतो से - अपने ही भाइयों का कच्चा मांस और गरम -गरम लोथड़े से बुझा रहे हैं बेशर्म भुक्खड़ों के पेट की आग एक अंतरहीन कतार में बैठे ये आदिम हौवे जैसे एक ही कौर में निगल जाएंगे सबकुछ नेजे की धार वाले तेज नाखुनों से चीर कर पी जएंगे सारा रक्त धमनियों से खींचकर एक ही बार में पहचान के तमाम दरवाजे पर कालिख पूत गई है वे अंधे हो गए है विवेक के लिए। किसी कस्बे, गली मुहल्लों के कुत्तों की तरह लड़ रही हैं, प्रदेशों की सीमाएं हिजड़ो ने बना लिए है, विधायक-दल पहन लिए हैं भाषाई कपड़े और ताली बजा -बजा लड़ते जा रहें हैं हक के लिए बदलते जा रहे हैं दल पर दल ओहदों के लिए और यह मेरा देश मुझे महसूस होता है सिमट कर कुछ दिनों में मुझे तक ही सीमित रह जाएगा और भयानक आतंक से मेरी आवाज़ बंद हो जाएगी गुम हो जाएगी जबरदस्ती ठोकी हुई कीलों से जुबान - ताकि मैं कह न सकूँ यह मेरा देश!यह मेरा देश!! धन्यवाद कवि -मानिक बच्छावत

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