Ranjan Das Gupta | Howrah | [email protected]

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06/12/2024 Ranjan Das Gupta Relationship Views 276 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
प्रेम और निर्भरता

अगर घर में विवाद हो, पत्नी जीत जाती है – चाहे गलत हो, चाहे सही हो – क्योंकि पति उस पर निर्भर है कामवासना के लिए । वह डरता है, व्यर्थ का विवाद खड़ा करो, वह कामवासना से इंकार कर देगी । झंझट करो, तो प्रेम मिलना मुश्किल हो जाएगा । और प्रेम चाहिए तो इतना सौदा करना पड़ता है । इसलिए अक्सर पति हार जाता है । और पत्नी जानती है । इसलिए दो ही मौके पर पत्नियां उपद्रव खड़ा करती है – या तो पति भोजन कर रहा हो, या प्रेम करने की तैयारी कर रहा हो । क्योंकि वही दो बातो पर वह निर्भर है । उन्ही दो बातों पर वह गुलाम है । इसलिए पति भोजन की थाली पर बैठा कि पत्नी की शिकायतें शुरू हो जाती है । उपद्रव शुरू हुआ । और पति डरता है कि किसी तरह भोजन… तो हां-हूं भरता है।और ध्यान रहे, भोजन और कामवासना दोनों जुड़े हैं । भोजन तुम्हारे अस्तित्व के लिए जरुरी है, व्यक्ति के; और कामवासना समाज के अस्तित्व के लिए जरुरी है । कामवासना एक तरह का भोजन है, समाज का भोजन । और वह व्यक्ति का भोजन है । दोनों बातों पर पति निर्भर है । इसलिए बड़े से बड़ा पति, चाहे वह नेपोलियन क्यों न हो, घर लौटकर दब्बू हो जाता है । नेपोलियन भी जोसोफिन से ऐसा डरता है जैसे कोई भी पति अपनी पत्नी से डरता है । वह सब बहादुरी, युद्ध का मैदान, वह सब खो जाता है । क्योंकि यहां किसी पर निर्भर है । कुछ जोसोफिन से चाहिए, जो कि वह इंकार कर सकती है । वेश्याएं ही अपने शरीर का सौदा करती है, ऐसा आप मत सोचना; पत्नियां भी करती है । क्योंकि यह सौदा हुआ कि इतनी बातों के लिए राजी हो जाओ, तो शरीर मिल सकता है; नहीं तो नहीं मिल सकता । शरीर चाहिए, तो इतनी बातों के लिए राजी हो जाओ । इसलिए क्रोध पति का पत्नी पर बना रहता है । पत्नी का क्रोध पति पर बना रहता है । क्योंकि वह भी निर्भर है इस पर । जहां भी निर्भरता है, वहां क्रोध होगा, वहां प्रेम नहीं हो सकता । प्रेम तुम उसी दिन कर पाओंगे, जिस दिन तुम निर्भर नहीं हो । जिस दिन तुम स्वावलंबी हुए, प्रेम की दिशा में स्वावलंबी हुए । तुम अकेले भी हो सकते हो, और तुम्हारे आनंद में रत्तीभर फर्क नहीं पड़ेगा । बस, उस दिन तुम प्रेम कर सकोगे और उसी दिन पत्नी तुम्हारी तुम्हें सताना बंद करेगी । क्योंकि अब वह जानती है कि अब सताने का कोई अर्थ नहीं रहा, अब झुकाने का कोई उपाय नहीं रहा, निर्भरता समाप्त हो गई है ।

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