बिखरे वर्णों से
फिर नई कविता
बनाना चाहती हूँ
गोरे पन्नों में
फिर खो जाना चाहती हूँ।
जीवन के हर बातों कों
हल अल्फाजों कों
काव्य के रूप में व्यक्त करना चाहती हूँ
अपनें हर दर्दो कों यूँही
व्यक्त कर देती हूँ
जीवन के हर अनुभव कों
पन्नों से जोड़ देती हूँ
जीवन के हर डोर कों
हर कविता से जोड़ देती हूँ।
आज मैं बिखरे
शब्दों कों जोड़कर
अपनी ही कहानी लिखना चाहती हूँ
जीवन के हर दर्दो में
मुस्कुराती हूँ
हर पलों में
पन्नों से जुड़ जाती हूँ
जीवन के हर अनुभव से
यु दर्दभरी, खुशभरी
कविता लिख देती हूँ
गोरे पन्नों से यूँ ही
जुड़ जाती हूँ
अपनें हर पलों कों
काव्य के रुप में
व्यक्त कर देती हूँ।
धन्यवाद : काजल साह :स्वरचित
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