मार्टिन लुथर (Martin Luther, 1483-1546 ई०) (मार्टिन लुथर का जन्म पन्द्रहवी शताब्दी के अंत में जर्मनी के सैक्सनी प्रदेश के आइवेन नामक गाँव में हुआ था उन्होंने एरफर्ट विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी की। 1507 ई० में वे रोम की यात्रा पर गए। वहाँ पर उन्होंने पोप के भोग व विलासितापूर्ण । भ्रष्ट जीवन को देखा। उन्हें रोम चर्च के अनेकों दोष दिखाई दिए । वापस लौटने पर उन्होंने कहा "ईसाई धर्म रोम के जितना निकट है उतना ही बुराईयों से युक्त है।" इसी समय रोम में सेंट पीटर के गिरिजाबर को बनवाने के लिए धन की आवश्यकता पड़ी। अतः उसने पूरे यूरोप में "पाप मोचन पत्रों" की बिक्री करना प्रारंभ किया बिटन वर्ग मैं भी पोप का प्रतिनिधि टेटलेज ने पाप मोचन पत्री की बिक्री शुरू की। लुथर ने इन पत्रों की बिक्री का विरोध किया। उसने यह महसूस किया कि पाप मोचन पत्रों या क्षमा पत्रों की बिक्री शास्त्री के विरूद्ध है । लूथर ने बिटनबर्ग के मुख्य चर्च के प्रवेश द्वार पर, पंचानवे अभिधार्णाओं (Ninety Five The- ses) वाला पैम्फलेट चिपका दिया। यूरोप में यहीं से धर्म सुधार आन्दोलन की शुरूआत मानी जाती है। लूथर के इस कदम से चर्च प्रशासन नाराज हो गया। चर्च प्रशासन ने लूथर को अपना विरोध वापस लेने या अपने बचाव में सफाई पेश करने को कहा। 1519 ई० में लीपजिंग के जन अदालत में लूथर ने कहा कि सारे पादरी व स्वयं पोप पतनोन्मुख हैं। लूथर पर धर्मद्रोह का अभियोग लगाया गया और धर्म से बहिष्कृत कर दिया गया। अदातल के आदेश को लूथर ने बिटेनबर्ग के भरे बाजार में जला दिया। लूथर ने 1520 ई० में अपने धार्मिक विचारों को लेकर तीन लेख प्रकाशित किए- (i) निजी आस्था के माध्यम से पाप मोचन (Justification of faith) (ii) धर्मग्रंथ की प्रमुखता (Primary of Scripture) (ii) समस्त आस्थावानों का पादरीवाद (Presthood of all Believers) लूथर के धार्मिक सिद्धांतों का यूरोप में व्यापक प्रभाव पड़ा। यूरोप की आम जनता व अनेक सुधारवादी राजाओं लूथर के धार्मिक विचारों को अपनाया। अतः ईसाई धर्म दो भागों में विभाजित हो गया। रोम के पोप में आस्था ने रखने वाले रोमन कैथोलिक कहलाएं । मार्टिन लूथर के धार्मिक सिद्धान्तों को मानने वाले प्रटेस्टेंट (Protestant) कहलाएं। धन्यवाद काजल साह