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01/06/2023 Kajal sah General Views 179 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
निबंध : प्रार्थना का महत्व
परिस्थितियों हमारे जीवन को इतना दुखी बना देते हैं कि हम अपने को एकदम असहाय आर निरूपाय पाते हैं। ऐसी स्थिति में यह सोचना चाहिए कि हम अपने जलवन के निर्माण के लिए स्वतंत्र, समर्थ और अपने भाग्य के विधाता है, क्योंकि परम पुरुष परमात्मा सदैव हमारे साथ है और हमारे लिए सच्चे, मार्गदर्शक और कल्याणकारी है। परमात्मा अंतर्मन में  साहस का संचार करते हैं और साहस हमें सच्ची की  राह पर चलना और झूठ का तिरस्कार करना सिखाता है। हममें से तमाम लोग जानते हुए भी गलत को गलत कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। बात दिल को जचती नहीं, फिर भी ना जाने किस मजबूरी मैं दूसरों की हां में हां मिलाते रहते हैं और अपने मन को मारते रहते हैं। प्रार्थना में बहुत शक्ति है। वह हमें अंधकार से प्रकाश की ओर एवं असफलता से सफलता की ओर अग्रसर करते हैं।
 हम जैसे ही परमात्मा क्यों उन्मुख होते हैं उनकी प्रार्थना करते हैं और उनसे किसी भी प्रकार की सहायता की याचना करते हैं, वैसे ही उनकी सहायता के अदृश्य हाथ हमारी और बढ़े चले आते हैं। हमें उनकी कृपया प्राप्त होने लगती है। हमारे भीतर से निराशा का भाव जाने लगता है। हम प्रसन्न रहने लगते हैं। हमारे भीतर से निराशा का भाव जाने लगता है। हम प्रसन्न रहने लगते हैं। फिर हमारा मनसुख कार्य में लगने लगता है। ऐसे परमात्मा भी हमारी सहायता के लिए किसी ने किसी के हृदय में प्रेम ना उत्पन्न कर देते हैं। फिर हमारे समक्ष उत्पन्न परिस्थितियों में नया मोड़ आ जाता है। हमारी हारी हुई बाजी भी जीत में बदल जाती हैं। असफलता तो हमारे निकट फटकती नहीं है। जैसी हमारा विश्वास होता है, हम वैसा ही फल भी प्राप्त हैं। हमारी जैसी आकांक्षाएं होती हैं, वे वैसे ही फलीभूत होती है। सुविचार और कल्याण की भावना से किए गए कार्य का परिणाम बेहद सुंदर होता है इसके लिए केवल आपके विचारों में दृढ़ता होनी चाहिए। जरूरत इस बात की भी है कि आपकी सोच सुविचारी एक और कल्याणकारी है। आपके और आपके परिवार के साथ ही समाज के लिए भी कल्याणकारी हो। प्रभु से प्रार्थना के क्षणों में जब हमारा मन कार्गो होता है और हम अपनी समस्या है उनके समक्ष रखकर  उनसे कुछ याचना करते हैं तो हमें तुरंत समाधान मिल जाता है। इसलिए कहा भी जाता है कि सच्चे हृदय से की गई  प्रार्थना तुरंत सुनी जाती है।

दुख एक मानसिक कल्पना हैं

 दुख एक मानसिक कल्पना है। कोई पदार्थ, व्यक्ति या क्रिया दुख नहीं है, संसार में सब नाम-रूप, गधा -हाथी, स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी, वृक्ष -लता  आदि खिलौने हैं।
 हम खुद को खिलौना मानेंगे तो गधा या हाथी होने से सुख दुख होगा, खुद को स्वर्ण, मूल्य धातु देखेंगे तो यह मनुष्य देह नहीं रहेगी। हम विराट है, साक्षात ब्रह्मा है। जो मनुष्य इस जगत प्रपंच का सत्य देखता है उसे माया ने ठग लिया है। जो पहले भी नहीं थे। आगे भी नहीं रहेंगे, बीच में थोड़ी देर को दिखाई दे रहे हैं, उन्हीं को सब कुछ समझकर माया मोहित मनुष्य व्यवहार कर रहा है। तत्वज्ञान शिक्षा देता है कि जो कुछ दिखाई दे उसे दिखाई देने दो, जो बदलता है उसे बदलने दो, जो आता - जाता है उसे आने - जाने दो। यह सब जादू का खेल हैं।
प्रार्थना का अर्थ यह नहीं होता है कि सिर्फ बैठकर है कि सिर्फ बैठकर कुछ मंत्रों का उच्चारण किया जाये। इसके लिए आवश्यक है कि आप निर्मल, शांत, और ध्यान अवस्था में हों इसलिए वैदिक में
प्रार्थना  से पहले ध्यान होता है। ज़ब मन एकाग्र होता है तो प्रार्थना और भी शक्तिशाली हों जाती है। ज़ब आप प्रार्थना करते हैं और उसमें आपको पूर्ण रूप से मग्न होना होता है।
यदि मन पहले से ही कहीं और भटक रहा है तो फिर वहां प्रार्थना नहीं होती। जब आपको कोई दुख होता है। तब आप अधिक एकाग्रचित  हो जाते हैं।   इसलिए दुख में लोग अधिक सुमिरन करते हैं। प्रार्थना आत्मा की पुकार होती है। प्रार्थना तब होती है जब आप कृतज्ञता  महसूस कर रहे होते हैं या आप अत्यंत निस्सहाय या निर्बल महसूस कर रहे होते हैं। इन दोनों की परिस्थितियों में आपकी प्रार्थना की पुकार सुनी जाएगी। जब आपने निस्सहाय होते हैं   तो प्रार्थना अपने आप ही निकलती हैं इसलिए कहते हैं कि निर्बल के बलराम। यदि आप कमजोर है तो ईश्वर आपके साथ हैं। प्रार्थना उस क्षण घटित होती है जब आपको अपनी सीमित क्षमता का बोध होता है। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि आप किस की प्रार्थना कर रहे हैं।
 प्रार्थना में प्रयोग किए जाने वाले शब्द प्रतीक और अनुष्ठान किसी धर्म विशेष द्वारा किए गए हो सकते हैं। परंतु प्रार्थना उन सब से परे होती हैं। वह भावनाओं के सूक्ष्म स्तर पर घटित होती हैं और भावनाओं शब्द तथा धर्म के परे हैं प्रार्थना के कृत्य में ही परिवर्तन लाने की शक्ति होती है।

धन्यवाद
                             

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