पीने के पानी में मौजूद कण मनुष्य के डीएनए तक को क्षति पहुंचा सकते हैं। यह कण मानव बाल की चौड़ाई से भी हजारों गुणा छोटे होते हैं। साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट नामक पत्रिका में प्रकाशित नए अध्ययन में पीने के पानी में नैनो कणों की मौजूदगी और उनके संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के बारे में चिंताएं जताई गईं हैं।इस अध्ययन को चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी लुधियाना के बायोसाइंसेज विभाग, सरदार पटेल विश्वविद्यालय मंडी और अमेरिका की ऑउबर्न यूनिवर्सिटी ने संयुक्त रूप से किया है। इसमें डॉ. गगनदीप सिंह, डॉ. नीलम ठाकुर और डॉ. राकेश कुमार ने संयुक्त रूप से अध्ययन किया है।
अध्ययन के अनुसार नैनो कण अविश्वसनीय रूप से छोटे कण होते हैं, जो मानव बाल की चौड़ाई से हजारों गुणा छोटे होते हैं। इनका इस्तेमाल सौंदर्य प्रसाधनों से लेकर सनस्क्रीन तक और यहां तक कि जल उपचार में भी कई तरह के उत्पादों में किया जा रहा है। जल में उनकी बढ़ती मौजूदगी मानव स्वास्थ्य पर उनके प्रभाव के बारे में सवाल उठा रही है। अध्ययन से पता चलता है कि निगलने, सांस लेने या त्वचा के संपर्क से इन कणों के संपर्क में आने से ऑक्सीडेटिव तनाव, सूजन, डीएनए क्षति और यहां तक कि जीनोटॉक्सिसिटी यानी आनुवांशिक सामग्री को नुकसान पहुंचाने की क्षमता हो सकती है।इसमें बताया है कि रिवर्स ऑस्मोसिस और निस्पंदन जैसी विधियां पानी से नैनो कणों को हटा सकती हैं। यह अध्ययन उन्नत पहचान और उपचार तकनीकों पर आगे के शोध की जरूरत पर जोर देता है। यह अध्ययन पीने के पानी में नैनो कणों की ओर से उत्पन्न संभावित स्वास्थ्य जोखिमों को संबोधित करने की जरूरत के लिए एक चेतावनी दे रहा है।
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