Ranjan Das Gupta | Howrah | [email protected]

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03/10/2024 Ranjan Das Gupta Culture Views 449 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
कुली

जब मैं गर्भवती हुई, तो सातवें महीने में अपने मायके राजस्थान जा रही थी। मेरे पति शहर से बाहर थे, और उन्होंने एक रिश्तेदार से कहा था कि मुझे स्टेशन पर छोड़ आएं। लेकिन ट्रेन के देर से आने के कारण वह रिश्तेदार मुझे प्लेटफॉर्म पर सामान के साथ बैठाकर चला गया। ट्रेन मुझे पाँचवे प्लेटफार्म से पकड़नी थी, और गर्भ के साथ सामान का बोझ संभालना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था। तभी मैंने एक दुबले-पतले बुजुर्ग कुली को देखा। उसकी आँखों में एक मजबूरी और पेट पालने की विवशता साफ झलक रही थी। मैंने उससे पंद्रह रुपये में सौदा कर लिया और ट्रेन का इंतजार करने लगी। डेढ़ घंटे बाद जब ट्रेन आने की घोषणा हुई, तो वह कुली कहीं नजर नहीं आया। रात के साढ़े बारह बज चुके थे, और मेरा मन घबराने लगा था। अचानक मैंने देखा, वह बुजुर्ग कुली दूर से भागता हुआ आ रहा था। उसने मेरे सामान को जल्दी-जल्दी उठाया, लेकिन तभी घोषणा हुई कि ट्रेन का प्लेटफार्म बदलकर नौ नंबर हो गया है। हमें पुल पार करना पड़ा, और बुजुर्ग कुली की सांस फूलने लगी थी, लेकिन उसने हार नहीं मानी। जब हम स्लीपर कोच तक पहुंचे, तो ट्रेन रेंगने लगी थी। कुली ने जल्दी से मेरा सामान ट्रेन में चढ़ाया। मैंने हड़बड़ाकर दस और पाँच रुपये निकाले, पर तब तक उसकी हथेली मुझसे दूर जा चुकी थी। ट्रेन तेज हो रही थी, और मैंने उसकी खाली हथेली को नमस्ते करते हुए देखा। उस पल में उसकी गरीबी, मेहनत, और निःस्वार्थ सहयोग मेरी आँखों के सामने कौंध गए। डिलीवरी के बाद मैंने कई बार उस बुजुर्ग कुली को स्टेशन पर खोजने की कोशिश की, पर वो फिर कभी नहीं मिला। अब मैं हर जगह दान करती हूं, मगर उस रात जो कर्ज उसकी मेहनत भरी हथेली ने दिया था, वह आज तक नहीं चुका पाई। सचमुच, कुछ कर्ज ऐसे होते हैं, जो कभी उतारे नहीं जा सकते।

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