अगर आप ने आज अपने माता –पिता का ध्यान भी रखा तो कल बुढ़ापा तो आप का भी आना है और तब आप के बच्चों के द्वारा आप का ध्यान भी नहीं रखा जायेगा,क्योंकि आप के बच्चे वही करेंगे जो वे आप को करते हुए देखेंगे।अगर आज आप का व्यवहार अपने माता–पिता के साथ नहीं है,तो कल आप भी वही सब भुगतने के लिए तैयार हो जाएं।मेरा उद्देश्य आपको डराना नहीं है,बल्कि यह बताना है कि हम जो बोएंगे वही पायेंगे।
माता – पिता हमारे जीवन के आधार होते है।उन्हीं की वजह से संसार में आ पाते हैं।जन्म से बड़े तक माता – पिता बच्चों का पालन – पोषण करते हैं। लेकिन जब वही बच्चें बड़े हो जाते हैं,तब वे अपने माता –पिता को बोझ के रूप में देखते हैं। गलत शब्दों का प्रयोग एवं व्यवहार करते हैं। अखबार में मैंने कई बार यह खबर पढ़ा है कि एक बेटा ने अपनी ही मां का गला घोटकर मारा डाला,एक बेटी ने अपने ही पिता को इतना मारा कि पिता ने आत्महत्या कर ली।जब ऐसे –ऐसे खबरों को पढ़ती हूं।तो मेरा दिल कांप जाता है। एक मां नौ माह का दर्द सहती एवं खुद की नींद,स्वप्न को त्यागकर अपने बच्चों को बड़ा करती है और एक बाप यह भूल ही जाता है कि वह एक इंसान है ।होली,दीपावली इत्यादि त्यौहार में वह अपने लिए कुछ नहीं खरीदता लेकिन अपने बच्चों के लिए एक –एक रुपए जमाकर उसके इच्छाओं को पूर्ण करता है।यह है मीडिल क्लास पेरेंट्स की कहानी है।लेकिन जब वही बच्चें हो जाते है और अपने माता – पिता को शब्दों से , व्यवहार से तकलीफ देते हैं,तब ईश्वर भी उन्हें माफ नहीं करता,क्योंकि यह प्रकृति का नियम है – "जो बोयेंगे वही पायेंगे "।
1. धर्म:अगर आप शादीशुदा है और आपके बच्चे भी हैं।जिस प्रकार आज आप की जान आपके बच्चों में बस्ती है और आप उनसे दूर होने के बारे में सोच भी नहीं सकते बिल्कुल इसी तरह आप के माता –पिता भी आप से दूर होने की कल्पना तक नहीं कर सकते हैं।माता – पिता को ईश्वर का दर्जा दिया जाता है।माता –पिता का दिल दुखाना अर्थात् ईश्वर का दिल दुखाना,उनको उपेक्षित करना है। शिशु जब जन्म लेता है,तब वह गीली मिट्टी के भांति होता है।गीली मिट्टी को आकार सबसे पहले माता – पिता देते है।जब माता– पिता बूढ़े हो जाते हैं,तब उनको हीन एवं बोझ की दृष्टि से हमें नहीं देखना चाहिए बल्कि उस भगवान ( माता – पिता ) की सेवा सच्चे मन एवं पवित्र हृदय से करना चाहिए।यह हमारा परम धर्म है । हमें अपने धर्म का निर्वाह सुचारू रूप से करना चाहिए।
2. कुंजी : मेरे माता – पिता अक्सर कहते हैं –" माता –पिता को दुखी करके बच्चें आगे नहीं बढ़ पाते है" अर्थात् माता – पिता का आशीर्वाद एवं प्रेम सफलता की कुंजी है। कई बार हम दुर्घटनाओं से बच जाते हैं,माता – पिता के आशीर्वाद एवं प्रेयर के वजह से ।शारीरिक विकास,शिक्षा ,नौकरी इत्यादि विभिन्न क्षेत्रों में कोई इंसान अपने माता – पिता के आर्थिक सहयोग एवं आशीर्वाद की वजह से ही आगे बढ़ पाते है।उनके सहयोग,आशीर्वाद एवं प्रेम से जीवन में ऊर्जा, सकारात्मकता एवं हर्ष आता है।ऊर्जापूर्ण,उत्साहपूर्ण एवं उल्लासपूर्ण रिश्ते को हमें कभी तकलीफ नहीं देना चाहिए।
3. त्याग : त्याग की मूर्तियां माता – पिता है,जिन्होंने अपने इच्छाओं को,आराम को ,सौंदर्य एवं सपने को छोड़कर अपना समय ,ऊर्जा एवं धन हमें सुदृढ़, सशक्त एवं आत्मनिर्भर में उन्होंने लगा दिया।क्या हम इतने नाकाबिल है कि बुढ़ापे में माता – पिता का साथ नहीं दे सकते हैं? क्या हम सचमुच इतने व्यस्त हैं कि हम कुछ क्षण उनके साथ बैठकर बात नहीं कर पाते ? यह सब बहाने है,जो हमने अ तय कर लिया है। इसलिए इन बहानों को नष्ट करके माता – पिता के साथ हमें समय बिताना चाहिए।
4. अनुभव: बड़े कहते भी है कि यह बाल धूप से सफेद नहीं हुई है,बल्कि अनुभव से हुई है।हमारे माता – पिता के साथ जीवन के कई वर्षों के अनुभव रहते हैं। जीवन के हर अच्छी और बुरी अनुभव हमारे जीवन को आकार दे सकती है।जीवन इतना बड़ा भी नहीं है कि बार –बार गलती करके सीखा जाएं। इसीलिए अगर हम अपने माता – पिता के साथ समय व्यतीत करेंगे ,तब हम उनसे बहुत सीख सकते हैं।उनके अनुभव से हमें जीवन में सही निर्णय लेने की क्षमता एवं सही दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी।जिससे हम अपने करियर एवं निजी में सफल हो पायेंगे। इसलिए हमें माता – पिता को बोझ के रूप में देखना चाहिए अपितु शक्ति के रूप में देखना चाहिए।वह शक्ति के रूप में जो हमें हर मुसीबत ,परेशानियों एवं तनाव से लड़ना सिखाती है।
5. घर : बड़ी दुख की बात है कि आज भारत में ज्वाइन फैमिली की संख्या कम हो रही है।ज्वाइन फैमिली के लिए भारत जाना जाता था।जब परिवार में दादा – दादी अर्थात् माता – पिता के साथ हमलोग रहते हैं,तब घर में पॉजिटिव माहौल बनता है।घर बच्चें भी दादा जी एवं दादी जी के साथ खुशी के साथ खेलते है।यह दृश्य अत्यंत सुंदर ,मनमोहक एवं सकारात्मकता से भरा लगता है।
हमें अपने माता–पिता का हमें ध्यान रखना चाहिए।माता–पिता की सेवा न केवल हमारा कर्तव्य मात्र है बल्कि हमें भी मानसिक शांति,उन्नति एवं समृद्धि की प्राप्ति भी होती है ।
आशा करती हूं कि यह निबंध आपको अच्छा लगा होगा।
धन्यवाद
काजल साह
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