धर्मांतरण एवं बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ संघर्ष में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन को आदिवासी समाज के पारंपरिक ग्राम प्रधानों, धर्मगुरुओं एवं आम लोगों का पुरजोर समर्थन मिल रहा है। आज अमर शहीद सिदो-कान्हू की जयंती पर राजनगर में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने उपस्थित हजारों लोगों से सहयोग मांगा, तो भीड़ ने दोनों हाथ उठा कर, उनका समर्थन किया।
कार्यक्रम की शुरुआत देश परगना एवं विभिन्न माँझी परगनाओं द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर हुई, जिसके बाद मांझी परगना ने धर्मांतरण का मुद्दा उठाते हुए इसे समाज के लिए घातक बताया। मंच पर मौजूद हर वक्ता आदिवासी समाज पर आए संकट के मुद्दे पर एकजुट दिखा।
तत्पश्चात पूर्व सीएम चम्पाई सोरेन ने अपने संबोधन में कहा कि आदिवासियों के अस्तित्व एवं अस्मिता की रक्षा के लिए बाबा तिलका मांझी, वीर सिदो-कान्हू, भगवान बिरसा मुंडा, पोटो हो, टाना भगत समेत कई क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया था। जब हमारे पूर्वजों ने अस्तित्व की लड़ाई में कभी भी आत्म-सम्मान से समझौता नहीं किया, तो फिर हम कैसे हार मान जाएँगे।
उन्होंने याद दिलाया कि 1967 में तत्कालीन सांसद कार्तिक उरांव ने संसद में डीलिस्टिंग बिल पेश किया था, जिसमें आदिवासियों की संस्कृति एवं अस्तित्व की रक्षा के लिए धर्मांतरण कर रहे लोगों को आरक्षण से बाहर रखने का प्रावधान था। तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा इसे संसदीय समिति को भेजा गया, जिसने डीलिस्टिंग की अनुसंशा की थी। लेकिन बाद में जब कुछ नहीं हुआ, तो कार्तिक उरांव ने 322 सांसदों एवं 26 राज्यसभा सांसदों का हस्ताक्षर करवा कर, इस बिल को लागू करने की अपील की। लेकिन कांग्रेस सरकार द्वारा इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
कांग्रेस पर हमला बोलते हुए उन्होंने कहा कि देश की आजादी के बाद भी 1951 की जनगणना तक आदिवासी धर्म कोड का प्रावधान मौजूद था, लेकिन 1961 में कांग्रेस की सरकार ने उसे हटा दिया।
अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित कई लोकसभा एवं विधानसभा सीटों पर जीते ईसाई जन-प्रतिनिधियों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जिस किसी भी व्यक्ति ने रूढ़िवादी परंपरा को छोड़ दिया, आदिवासी जीवन शैली को त्याग दिया, उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए।
आदिवासी समाज के अस्तित्व की रक्षा के लिए चल रहे आंदोलन का जिक्र करते हुए उन्होंने दावा किया कि बोकारो, हजारीबाग, चाकुलिया एवं ओडिशा में भी उनके कार्यक्रम होने जा रहे हैं। कुछ महीनों बाद, वे 10 लाख आदिवासियों के साथ, संथाल परगना की माटी से इस मुद्दे को उठायेंगे, जिसकी गूँज दिल्ली तक सुनाई देगी।
संथाल परगना के साहिबगंज जिले का उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि वहाँ आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर जीती कई जिला पार्षद एवं मुखिया तो आदिवासी समाज से हैं, लेकिन उनके पति मुस्लिम हैं। जब आप दूसरे समाज में शादी कर रहे हैं, तो वहीं खुश रहे, लेकिन हमारे समाज के अधिकारों में अतिक्रमण करने का प्रयास मत करे।
उन्होंने वीर भूमि भोगनाडीह का उदाहरण देते हुए बताया कि आज वहाँ भी बांग्लादेशी घुसपैठियों का बोलबाला है, और आदिवासियों से कई गुना ज़्यादा संख्या में वे लोग मौजूद हैं। पाकुड़ एवं साहेबगंज में ये घुसपैठिये ना सिर्फ आदिवासी समाज की जमीनें लूट रहे हैं, बल्कि ये लोग हमारी बेटियों की अस्मत से भी खिलवाड़ कर रहे हैं।
उन्होंने सरायकेला-खरसावाँ जिले के कपाली अंतर्गत बांधगोड़ा गांव का उदाहरण देते हुए बताया कि वहाँ भी आदिवासियों की डेढ़ सौ एकड़ से अधिक जमीन छीनी जा चुका है। इसे रोकना जरूरी है।
झारखंड सरकार को अंधी एवं गूंगी बताते हुए उन्होंने कहा कि वोट बैंक की वजह से इन लोगों को ना आदिवासियों पर हो रहा अत्याचार दिखता है, ना ही ये लोग हमारे समाज के मुद्दों पर कुछ बोल पाते हैं।
उन्होंने कहा कि अगर धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो भविष्य में हमारे जाहेरस्थानों, देशाउली एवं सरना स्थलों पर पूजा करने कौन जाएगा? ऐसे तो हमारा अस्तित्व ही खत्म हो जायेगा।
सरायकेला खरसावाँ के राजनगर में आदिवासी सांवता सुशार अखाड़ा द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग जुटे थे।
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