कहानी : अधूरा
एक समय की बात है बालसपुर नामक गांव में तीन भाई छोटी सी मिट्टी के घर में रहते है और उन तीनों भाइयों का सपना था कि वो अपने मिट्टी के घर को पका का घर बनाएंगे, यह सिर्फ उनके ख़्वाबों में ही था और इस ख्वाब को पूरा करने कि उनके अंदर कोशिश तक ना थी,वो तीनों भाई 12 साल से अपने पूर्वजों के ज़मीन पर काम करते आ रहे है, लेकिन उन बारह सालों में उन्होंने अपने घर और अपनी इच्छा का एक भी समान नहीं खरीद पाते थे, वो अपने हर कार्य को एक - दूसरे पर ही थोप दिया करते थे, उन तीनों भाइयों में निर्भरता एक सबसे बड़ी कमजोरी बन गई थी,जिसके कारण ही वो अपने कोई भी ख्वाब सच नहीं बना पा रहे थे।
बड़ा भाई एक नंबर का आलसी और कामचोर था, अगर कभी भी खेत में पानी डालने को होता वो जाकर पेड़ कि छाँव में सो जाता और अपना काम मझले भाई को सौंप देता, और उसका मझला भाई छोटे भाई को अपना और अपने बड़े भाई का दोनों काम देकर वो भी आराम फरमाता... अब छोटा भाई अपना और दोनों भाइयों के दिए हुए कामों को छोड़ वो भी मजे -मस्ती करने चल जाता और वो काम अधूरा के अधूरा ही रह जाता है, उनके आस - पास के पड़ोस में
सभी के घर पका और दो वक्त खाने के लिए अच्छे खाने होते थे
उनके यहाँ पर सभी लोग उन तीनों भाइयों कि तरह ही खेती करते थे
और वे सारे लोग अपना काम स्वयं करते थे यही कारण था कि इनका घर मिट्टी से पक्का में परिवर्तन हो गया और उन तीनों भाइयों का परिवर्तन कभी हुआ ही नहीं....
कुछ महीनों बाद बालसपुर गांव में
एक धनी जमींदार अजेत सेठ आया वो बालसपुर जिले का एक बेहद अमीर जमींदार था, जैसे ही बड़े भाई ने अजेत सेठ को देखा
अब उस सेठ के पास धीमे - धीमे उसके बातों को सुनने चला गया
वो सेठ बोल रहे थे गांव के कुछ खेती करने वाले लोगों को देखो अगर तुमलोगों के पास कोई ज़मीन है तो मुझसे सौदा कर लो मैं खड़े दाम दूंगा अपनी मुछ को ताव देते हुए कह रहे थे, जैसी उसने अपने बात को ख़त्म कि वैसे ही उसका बड़ा भाई बोला.... आपके खिदमत में गांव का चम्पू हाजिर है आइये.. आप मेरे साथ आइये.. उसका बड़ा भाई ज़मीनदार को नीम के पेड़ के सामने ले आया और कहने लगा - जी.. हजूर.. जी आपको मैं बड़े सस्ते और एक टिकाऊ ज़मीन दूंगा
ज़मीनदार ने कहा - ठगों गे नहीं नहीं तो चम्पू अब चम्पू बोला - हजूर मैं एक मेहनती और भरोसा पूर्ण व्यक्ति हु, आप ठहरे इतने बड़े ज़मीन दार आपको ठगना यानि भगवान को
ठगना होगा, मैं पापी बनना नहीं चाहता.. ठीक है अब इतना बोलो नहीं ज़मीन का भाव बताओ, जी... जी.. हजूर आप अपने है इसलिए ज्यादा नहीं सिर्फ सवा लाख रूपये दे दीजिये आपको तीन
बीघा ज़मीन देंगे और ज़मीन में कोई भी कमी आपको नज़र नहीं आएगी हजूर.. ठीक है लेकिन ज़मीन मुझे आज ही चाहिए यानि अब से 5 घंटे के अंदर और पैसा तुम्हें 5 घंटे में मिल जायेगा.. ठीक है हजूर आप आइये आपका ज़मीन आपका इंतज़ार करेंगा... अब ज़मीनदार चला गया अब उसका चम्पू दौड़े - दौड़े दोनों भाइयों तक पंहुचा और कहने लगा अब हमारा घर पका का होगा अब अपने सारे दुख ख़तम और ख़ुशी का जहान शुरू हो गया। अब दोनों भाई बड़े भाई से पूछता है - कैसे भैया? तुमलोगो पता है हमारे पूर्वजों का ज़मीन बालसपुर से कुछ दुरी पर एक और ज़मीन है हम दो ज़मीन को लेकर क्या करेंगे इसलिए मैंने योजना बनाया कि एक ज़मीन को बिक्री कर कुछ पैसों से अपना मिट्टी का घर पका में बदल देंगे
दोनों भाइयों ने बड़े भाई कि खूब तारीफ करने लगे और कहने लगे चलिए अब हम अपना ज़मीन देकर
पैसा ले लेते है.. हां क्यों नहीं लेकिन ज़मीन में सिचाई कि कमी है इसलिए चलो हम तीनों भाई मिलकर सिचाई करने चलते है...
हां भईया जरूर.. बड़े भाई ने एक
गैलन पानी भर, मझले भाई ने हाथ में हाल और छोटे भाई ने एक हाड़ी भर गीली मिट्टी, यह सारी समान तीनों भाई ज़मीन के सिचाई के लिये लेकर जा रहे थे.. अब तीनों भाई अपने पूर्वज के ज़मीन के सामने पहुंच गए और सभी के अंदर एक जोश था लेकिन यह जोश अब निर्भरता पर फिर से आ गई अब तीनों भाईओं ने फिर अपने काम को बहाना और निर्भरता पर ला दिए.. बड़ा भाई ने जैसे ही ज़मीन के सिचाई के लिए पानी देना शुरू किया वैसे ही वो अपना काम को छोड़ कर पेड़ कि छाँव में सो गया और कहने लगा मझले को मैं थोड़ा सा सो लेता हु तब तक तुम करो पानी डालने का काम
करो।
मझले भाई ने - हां कह दिया और कुछ मिनटों तक काम करने के बाद अब वो अपना और अपने बड़े भाई का दोनों कामों को छोटे भाई को सौंप कर चल दिया आराम फरमानें... कुछ घंटो के बाद छोटे भाई ने अपने काम के साथ ही साथ दोनों भाइयों के काम को छोड़ कर घूमने निकल पड़ा.. और काम आधा - ही अधूरा रह गया...7 घंटे हो गए लेकिन तीनों भाई अपने मस्ती में चूर थे, ज़मीनदार 8 घंटे के बाद उसके ज़मीन पर पंहुचा और देखा कि ज़मीन कितनी पुरानी और सिचाई भी नहीं हुई है.. अब वो गुस्से में बोला कि चम्पू साला कितना कितना झूठा है.. सिर्फ बड़ा - बड़ा फेकना जानता है करना नहीं अब मैं कभी भी उस बेईमान इंसान का चेहरा भी नही देखूँगा।
शिक्षा : जीवन में हमें कभी भी किसी पर पूर्ण निर्भर होकर काम नहीं करना चाहिए।
नाम : काजल साह : स्वरचित
|