भांड पाथेर
यह कश्मीर की पारंपरिक नाट्य विधा है, जो कि नृत्य संगीत और नाट्यकला का अद्भुत संयोजन है। इस नाट्य कला में हंसने और हंसाने का प्राथमिकता देते हुए व्यंग, मजाक और नकल उतारा जाता है। इस नाते विधा में संगीत देने के लिए सुरनाई, नगाड़ा ढोल आदि का प्रयोग किया जाता है।
स्वांग: यह पश्चिम उत्तर प्रदेश और हरियाणा की नाट्य कला है, जिसकी दो शैलियां प्रचलित है रोहतक शैली में बांगरू, हरियाणवी भाषा की प्रधानता है, तो वही हाथरस शैली में ब्रजभाषा प्रमुख है। इस नाते कलाम में कोमल भाव, रस सिद्धि के साथ चारित्रिक विकास पर बल दिया जाता है।
कृष्णाट्टम : या केरल में प्रचलित एक नाट्यकला है, जो 70 वीं शताब्दी में कालीकट के महाराजा मनवेदा के शासनकाल में अस्तित्व में आया। यह भगवान कृष्ण से जुड़े आठ नाटकों का चित्र है, जिसमें श्री कृष्ण के जीवन काल के घटनाओं का प्रकट किया जाता है।
मवाई : या गुजरात और राजस्थान क्षेत्र में प्रचलित नाट्य शैली है, जों कि कच्छ- कठियावाड़ क्षेत्र में विशेष रूप से प्रचलित है। इस नाट्य कला में वाद्य यंत्रों के रूप में भुंगल, तबला, ढोलक, बांसुरी, पखावज, रबाब, सारंगी, मंजीरा आदि का प्रयोग किया जाता है। भवाई नाटक कला में भक्ति और प्रेम का अद्भुत संयोजन देखने को मिलता है।
नौटंकी : यह नाटक कला उत्तर प्रदेश से संबंधित है, एवं इसकी कानपुर, लखनऊ तथा हाथरस से लिया काफी प्रसिद्ध है। इस नाट्य कला में दोहा, चौबोला, छप्पय, छंदो आदि का प्रयोग किया जाता है। आरंभ में नाटक कला पुरुष प्रधान थी, एवं पुरुषों के द्वारा ही महिलाओं के पात्र को निभाया जाता था। किंतु अब इसमें स्त्रिया भी बढ़ चढ़कर भाग लेती है।
दशावतार : यह कोंकण एवं गोवा क्षेत्र में प्रचलित धार्मिक नाट्यकला है। इसे सैकड़ों वर्ष पुराना माना जाता है। इस नाट्य कला में प्रस्तुतकर्ता भगवान विष्णु के 10 अवतारों की कहानियां को अभिनय के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इसमें अभियान करता परंपरागत साज श्रृंगार समेत दशावतार को प्रदर्शित करने वाले मुखोटे को भी धारण करते हैं।
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