जन मनुष्य के ब्रेन में ईश्वर कि कल्पना ने जन्म लिया था। आस्था का जन्म भी शायद तब ही हुआ था। (ईश्वर के होने या होने से )को कोई वैज्ञानिक साक्ष्य तो है नहीं लेकिन फिर भी अधिकतर लोग ईश्वर कि सत्ता को स्वीकार करते है और उसमें आस्था, श्रद्धा तथा विश्वास रखते है। अत : श्रद्धा एवं विश्वास आस्था की बहने है। इन कोमल मानवीय भावनाओं का संबंध ब्रेन के बजाए ह्रदय से अधिक होता है।
आस्था और अनास्था
आस्था और अनास्था मानव जीवन के अभिन्न अंग है। आस्थाए बनती है, टूटती है और कभी - कभी अपना स्वरूप बदल कर नये ढंग से स्थापित होती है। लोग कहते है कि वर्तमान युग में तमाम मानवीय आस्थाएं संकट के दौर में है। लोगों का एक - दूसरे पर से विश्वास हम होता जा रहा है। स्वार्थ के गणित ने रिश्तों जा रस सोख लिया है। वास्तविक प्रेम पर चमकीला दिखावा हावी है। लोगों में प्रभु पर आस्था बस प्रभु कृपा पाने पर सिमट गई है। चुटकी भर पूजा से लोग मटका भर रूपी प्रसाद चाहते है। संकट में सुख हथेली से फिलस न जायें जीवन में आस्थाओं का संरक्षण कैसे हो, इस पर सभी प्रबुद्ध जनों को सोचना विचारना होगा।
आस्था से जीवन में आनंद जन्मता है। आनंद को परमानंद तक ले जाने में आस्था की प्रतिफल परीक्षा होती है। हर कोई परीक्षा में पास नहीं होता, परन्तु जो आस्था के आघातों से अपनी आस्था की रक्षा कर ले जाता है, वह जीवन में बहुत सुख पाता है। ऐसे लोगों के अनुभव दूसरों के बहुत काम आ सकते है। ऐसे अनुभवों पर रचा साहित्य प्रेरणाप्रद होता है और संकट में हिम्मत बढ़ाने वाला होता है। ब्रेकिंग न्यूज़ और सनसनीखेज खबरों से मीडिया आस्थाओं को तहस - नहस करता है, इस दौर में आस्था को मजबूत करने वाली ब्रेकिंग न्यूज़ भी तलाशनी होंगी और उसे भी मीडिया में सही व्यक्ति, जब निर्दोष साबित होता है तों उस पर तों खबर ही नहीं बनती है और या सिर्फ कहीं छपती है। तों सही व्यक्ति के संघर्ष को बौना बनाकर छोड़ देता है। दोषमुक्त होते - होते व्यक्ति के अंदर का सूरज बुझ न जाये, बल्कि अपनी संघर्ष गाथा से वह समाज की मशाल बन जाये, इस दिशा में सभी क्षमतावन लोगों को पूरी जिम्मेदारी से कार्य करना चाहिए।
आस्था और सफलता
जीवन को सफल बनाने के लिए प्रत्येक को कुछ आस्था या श्रद्धा रखना बहुत जरुरी होता है। यदि आस्था और अनुशासित होकर प्रत्येक कार्य समानुसार, सच्ची लग्न, ईमानदारी, मेहनत से किया जाये तों सफलता जरुर मिलती है। श्री गुरु नानक देव जी, स्वामी दयानन्द सरस्वती, राम कृष्ण परमहँस, महान अरविन्द, महात्मा गाँधी आदि हमारे प्रेरणा स्त्रोत इसके उदाहरण है।
सहयोग में आस्था मनुष्य को सामजिकता प्रदान करती है। उसे अपने परिवेश के साथ ताल -मेल बनाकर ही जीवन रूपी नौका को आगे बढ़ाना है। सबसे पहले कोई व्यक्ति मानव है तत्पपश्चात वह किसी सम्प्रदाय से संबंधित है। हमारी आस्था वसुवैध कुटुम्बकम पर आधारित होनी चाहिए। यह हमारी सच्ची आस्था सफलता की सीढ़ी है।
चिकित्सा के परिणाम में आस्था का बड़ा भारी महत्व है। एक ही तरह के दो रोगियों में एक ही चिकित्सक माध्यम एक ही चिकित्सा के परिणाम बहुत बार भिन्न निकलते है। बहुत से लोग इसको संयोग - मात्र कह सकते है लेकिन मुझे चिकित्सा के परिणाम में आस्था ( श्रद्धा एवं विकास ) का भी महत्व मालूम है क्युकी अपने 50 वर्ष के अनुभव में मैंने गहन रोग से पीड़ित आस्थावादी रोगियों को आशा के विपरीत ठीक होते देखा है और मामूली रोग से पीड़ित चतुर,अनास्थावादी तथा अति प्रश्नकर्ता रोगी को गहरी कठिनाइयों या उपद्रव में फँसते देखा है।
धन्यवाद
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