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10/07/2023 Kajal sah Inspiration Views 258 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
निबंध : दीनदयाल जी का छात्र जीवन

पंडित दीनदयाल जी के पैतृक गांव के कुछ बुजुर्ग बताते है कि दीना बचपन से शरारती न होकर गंभीर प्रवृति के बालक थे। हालांकि वह ढाई वर्ष की उम्र में पिता को खोने के बाद अपनी मामी रामप्यारी जी के साथ अपनी ननसाल चले गए थे और यदा -कदा नगला चंद्रभान आते रहते थे। बाद में ज़ब उनकी माता रामप्यारी जी की हो जाने के बाद दीनदयाल जी का लालन - पालन उनके मामा रामशरण जी ने किया। अपने मामा जी के पास गंगापुर में उन्होंने छठी क्लास तक पढ़ाई की। उसके बाद सेकंड क्लास में वह कोटा शहर में हॉस्टल में भेज दिए गए। उनके चचेरे मामा श्री नारायण शुक्ल रामगढ़ में रहते थे, और वे भी वहाँ स्टेशन मास्टर के पद पर कार्यरत थे, अत : ज़ब दीनदयाल जी ने कक्षा सातवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की तब उन्हें रायगढ़ में अपने चचेरे मामा के यहाँ आना पढ़ा। यहाँ उन्होंने आठवीं कक्षा में प्रवेश लिया और यहाँ से आठवीं कक्षा उत्तीर्ण की। आगे की शिक्षा के लिए उन्हें राजस्थान के सीकर जिले में जाना पड़ा। यहाँ पर उन्होंने कल्याण हाई स्कूल में नवी कक्षा में प्रवेश लिया। यहाँ दसवीं कक्षा में सर्वप्रथम आये। यह परीक्षा उन्होंने वर्ष 1935 में राजस्थान बोर्ड से उत्तीर्ण की। उनकी प्रतिभा के कारण विद्यालय एवं बोर्ड ने पुरस्कार स्वरूप उन्हें दो स्वर्ण पदक दिए। इतना ही नहीं सीकर के महाराजा ने भी उनकी प्रतिभा से प्रसन्न होकर उन्हें दो सौ पचास रूपये नगद पुरस्कार दिए एवं दस रूपये माहवार की छात्रवृत स्वीकृत कर दी। आगे की शिक्षा के लिए वे पिलानी के बिड़ला कॉलेज में पहुंचे। वहाँ उन्हें छात्रवास में रहना पड़ा। यहाँ भी उन्होंने इंटर की परीक्षा में सबसे पहला स्थान प्राप्त किया। इस बार भी बोर्ड एवं विद्यालय की ओर से उन्हें दो स्वर्ण पदक प्रदान किये गए, साथ ही सेठ घनश्याम दास बिड़ला ने दो सौ पचास नगद पुरस्कार और उन्हें बीस रूपये मासिक छात्रवृत्ति प्रदान की। उनकी लग्न और मेहनत उन्हें निरंतर पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती रही। स्नातक की पढ़ाई के लिए दीनदयाल जी कानपुर पहुंचे। यहाँ उन्होंने कानपुर के सनातन धर्म कॉलेज में B. A करने के लिए प्रवेश लिया। यहाँ भी वे छात्रावास में रहे। प्राय : वे पढ़ाई में डूबे रहते थे। जब सभी छात्र नियमानुसार छात्रावास की लाइट बंद कर देते थे और सो जाते थे, तब दीनदयाल जी लालटेन जलाकर अध्ययन में लगे रहते थे। तभी उनकी मेहनत रंग लाती थी। कानपुर में B. A की परीक्षा में भी वे सबसे पहले आये। उनकी इस उत्कृष्ट प्रतिभा के फलस्वरूप कॉलेज से उन्हें तीस हज़ार मासिक छात्रवृत्ति मिलने लगी। वे अपनी शिक्षा इसी छात्रवृत्ति पूर्ण कर रहे थे। B. A की शिक्षा पूरी करने के बाद M. A करने के लिए दीनदयाल जी आगरा पहुंचे। यहाँ उन्होंने अंग्रेजी विषय में अध्ययन करने के लिए आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज में प्रवेश लिया। यहाँ भी उन्होंने अपनी अनूठी प्रतिभा और लग्न का प्रदर्शन किया। वर्ष 1939 में M. A दूसरे वर्ष के लिए प्रवेश लेकर अध्ययन प्रारंभ किया। लेकिन यहाँ उनकी आगे की शिक्षा में व्यवधान उत्पन्न हो गया। धन्यवाद काजल साह Part -2 जल्द ही आएंगी। धन्यवाद

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