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06/12/2024 Manorama Kumari Story Views 120 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
मेरे पति

रात के सन्नाटे में, जब घर के सभी लोग गहरी नींद में थे, मेरी आंखों से नींद कोसों दूर थी। मैं बिस्तर पर लेटी अपने पति, वीरेन की तरफ देख रही थी। वह बड़े सुकून से सो रहे थे, जैसे उनकी जिंदगी में कोई परेशानी न हो। लेकिन मेरे मन में एक तूफान उठ रहा था। पिछले कुछ दिनों की घटनाओं ने मुझे अंदर से झकझोर कर रख दिया था। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी अपनी पहचान ही खत्म हो गई हो। मेरी हर बात, हर फैसला किसी और के हिसाब से तय किया जाता था। और इस सबमें सबसे बड़ा हाथ मेरे पति का था। मेरा नाम रिया वर्मा है। मैं इस घर की छोटी बहू हूं। घर में मेरी सास, सरला जी; मेरे पति, वीरेन; और हमारा एक बेटा है। बाहर से सबकुछ सामान्य दिखता है, लेकिन पिछले महीने जो हुआ उसने मेरी सोच को हमेशा के लिए बदल दिया। एक महीने पहले मेरे पिता का अचानक निधन हो गया। मेरे मायके में अब सिर्फ मेरी मां बची थीं। मैं माता-पिता की इकलौती संतान हूं। पिताजी के जाने के बाद मां पूरी तरह अकेली हो गई थीं। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह था कि अब मां कहां रहेंगी। मैं अपनी मां को अकेला छोड़ना नहीं चाहती थी, लेकिन उन्हें ससुराल लाने का ख्याल भी मेरे लिए असंभव था। कारण साफ था—जब मेरे बेटे के जन्म के बाद मां यहां आई थीं, तो सास और मेरे पति ने उन्हें नौकरानी से ज्यादा कुछ नहीं समझा था। मेरी मां सुबह से रात तक घर के कामों में लगी रहती थीं, लेकिन कभी उनके आराम या मदद के बारे में किसी ने नहीं सोचा। पिताजी की मृत्यु के बाद से वीरेन का ध्यान सिर्फ एक चीज़ पर था—मायके की प्रॉपर्टी। वह बार-बार मुझसे कहता, **"तुम्हारी मां को अब प्रॉपर्टी मेरे नाम कर देनी चाहिए। मैं उनकी जिम्मेदारी उठाने को तैयार हूं। वैसे भी वह अकेली हैं, उन्हें किसी सहारे की जरूरत तो है ही।"** मुझे वीरेन की बातों से नफरत होने लगी। जो इंसान हर महीने खर्च के नाम पर मुझे सवालों के कटघरे में खड़ा कर देता है, वह मेरी मां की जिम्मेदारी कैसे उठा सकता है? उनके अपने परिवार में भी तो यही होता था। वीरेन की मां ने कभी अपनी ससुराल की संपत्ति अपने नाम नहीं ली, फिर भी उनकी जिम्मेदारी खुशी-खुशी निभाई जा रही थी। लेकिन मेरी मां के लिए यह सौदेबाजी क्यों? कल रात मैंने सासू माँ से बात की, तो उन्होंने मुझे ही डांट दिया। उन्होंने कहा, **"तुम्हारा पति तुम्हारी मां की जिम्मेदारी क्यों उठाएगा? वह कोई कोल्हू का बैल नहीं है।"** मैंने तर्क दिया, **"जैसे आप हमारी जिम्मेदारी हैं, वैसे ही मेरी मां भी तो हमारी जिम्मेदारी हैं।"** लेकिन सासू माँ ने मुझे चुप करा दिया। **"मैंने अपने बेटे को जन्म दिया है, पाला है, इसलिए वह मेरी सेवा कर रहा है। तुम्हारी मां को अपनी बेटी से सेवा करवानी चाहिए। इतना ही सेवा करवाने का शौक था तो एक और बेटा पैदा कर लेतीं।"** उनकी बातें सुनकर मेरा दिल टूट गया। उन्होंने मुझे याद दिला दिया कि मैं बेटी हूं, बेटा नहीं। लेकिन मैंने उसी पल फैसला कर लिया कि अब मैं किसी की दया पर नहीं रहूंगी। अगली सुबह मैं जल्दी उठी और घर के सारे काम निपटाने लगी। मुझे व्यस्त देखकर सासू माँ ने पूछा, **"आज कहां जाने की तैयारी हो रही है?"** वीरेन ने भी पूछा, **"तुम इतनी जल्दी-जल्दी काम क्यों निपटा रही हो?"** मैंने सीधा जवाब दिया, **"मां के पास जा रही हूं। सोच रही हूं कि वहां की प्रॉपर्टी बेच दूं।"** मेरी बात सुनते ही वीरेन के चेहरे पर चमक आ गई। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कह पाता, मैंने कहा, **"प्रॉपर्टी बेचकर यहां मां के नाम एक छोटा सा मकान ले लूंगी। बाकी पैसे मां के अकाउंट में डाल दूंगी, ताकि उनके खर्चे आराम से चल सकें। मां पास रहेंगी तो मैं भी उन्हें संभाल सकूंगी।"** वीरेन यह सुनकर गुस्से से लाल हो गया। **"तुम्हारी इतनी हिम्मत कि मेरे फैसले के ऊपर फैसला लो?"** मैंने शांत स्वर में कहा, **"मायके के फैसले का अधिकार मेरा है। मेरी मां ने मुझे जन्म दिया है। अगर मैं उनके लिए नहीं सोचूंगी, तो और कौन सोचेगा?"** सासू माँ ने भी बीच में टोकते हुए कहा, **"बहू, अपनी मां के लिए तुम हमसे लड़ने को तैयार हो?"** मैंने उनकी ओर देखकर कहा, **"माँजी, कल आप ही ने मुझे रास्ता दिखाया था। आपने कहा था कि आपका बेटा मेरी मां की जिम्मेदारी क्यों उठाएगा। तो याद रखिए, मेरी मां भी मेरी जिम्मेदारी हैं। अगर आपने मुझे रोका, तो आपकी जिम्मेदारी भी मैं नहीं उठाऊंगी। यह घर सिर्फ वीरेन के पैसे से नहीं, बल्कि मेरे मेहनत और प्यार से भी चलता है। इसे घर मैंने बनाया है।"** मेरी बात सुनकर दोनों चुप हो गए। शायद पहली बार मैंने अपनी बात इतने स्पष्ट और मजबूत तरीके से रखी थी। मैं जानती थी कि वे नाराज होंगे, लेकिन मुझे अब इसकी परवाह नहीं थी। मैंने सारा काम जल्दी खत्म किया और अपने फैसले को अमल में लाने के लिए मां के पास चली गई। आज मैं महसूस कर रही थी कि मेरी आवाज़ दबाई नहीं जा सकती। अपने हक के लिए लड़ना कभी गलत नहीं होता, चाहे वह लड़ाई कितनी भी कठिन क्यों न हो।

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