जब हवाई जहाज नीचे से ऊपर उठता है, तो उसे घने बादलों से गुजरना पड़ता है। जब बादलों के बीच हवाई जहाज हो और तब हम खिड़की से बाहर देखें, तो उसे समय वहां केवल कोहरा नजर आता है। जब हवाई जहाज बादलों के पार चला जाता है और ऊंचाई पर पहुंच जाता है। तो एक सुंदर नीला आसमान और चमकता हुआ सूर्य दिखाई देता है। उससे मैं यदि हम नीचे देखें, तो हमें हुई के फैले हुए अंबर हवा में तैरते नजर आते हैं। यह दृश्य बड़ा है अद्भुत लगता है। जब हमारा हवाएं जहाज घने बादलों को पार कर रहा था, उसे समय हम सोच भी नहीं सकते थे कि इन बादलों के पार कोई सुंदर या मनमोहन आसमान भी है। जहां सूर्य का प्रकाश चमक रहा है। परंतु जब हम और ऊंचाई पर जाते हैं, तब देखते हैं कि इन बादलों के पर क्या है? वहां सुंदरता के साथ-साथ प्रकाश भी होता है। बारिश के दिनों में जैसे घने बादल देखकर हम यह समझते हैं कि सूर्य का प्रकाश ही नहीं, परंतु जब हवाई जहाज में बैठकर हम ऊंचाई पर जाते हैं, तो देखते हैं कि वहां केवल प्रकाश ही प्रकाश मौजूद है। जिन लोगों ने अभी आध्यात्मिक रास्ते को नहीं अपनाया है, उनके लिए इस बात पर विश्वास करना, कि अंतर में अंधेरे के पर कोई प्रकाश भी है, मात्र कल्पना है। आत्मज्ञान का अनुभव भी हवाई जहाज में उड़ने का समान ही है। जब हम ध्यान- अभ्यास मैं बैठने के समय आंख बंद करते हैं तो हमें अंधेरा ही अंधेरा नजर आता है। पर समय के साथ हम अपने अंतर में अंधेरे के पार प्रकाश का अनुभव करते हैं। और वहां हमें अद्भुत दृश्य भी देखने को मिलता है। जिस तरह हवाई जहाज का पायलट हमें बादलों के पार ले जाता है, जहां हम सूर्य का प्रकाश देखते हैं। ठीक उसी तरह हमें भीतर के सूर्य को देखने के लिए किसी अनुभवी गुरु की आवश्यकता है। जो हमें ध्यान- अभ्यास की कला सिखाएं। तब हम अपना भीतर के अंधेरे को चीरते हुए प्रकाश से भरे आध्यात्मिक मंडलों का अनुभव कर सकते हैं। आध्यात्मिक मंडल सुंदरता और प्रभु के प्रेम से भरपूर है।
स्वयं वो बदलाव बनिए, जो आप दुनिया में देखना चाहते है, महात्मा गाँधी का यह उद्धरण आज कर परिदृश्य में सामाजिक परिवर्तन लाने में बहुत महत्वपूर्ण है। आज हर कोई पहले दूसरों के परिवर्तन की प्रतीक्षा कर रहा है और उसके बार अपने परिवर्तन के बारे में सोच रहा है। यह दुखद है कि हम सभी परिवर्तन की प्रक्रिया में अपने आप को बिलकुल अंत में खड़ा करते है और दूसरों को आगे रखते है। भला ऐसा क्यों करते हैं हम सभी? क्युकी हम सभी अपने चश्मे से दुनिया पसंद करते है। इसलिए अधिकांश लोगों को सदैव सामने वाले से ही परिवर्तन की अपेक्षा रहती है, न की स्वयं से। इसमें कोई दो राय नहीं है कि हम सभी अपने जीवन में बदलाव तो चाहते है, किन्तु हमारे लिए असली चुनौती है अपने वांछित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमारे परिवर्तन को सही दिशा देना। हममें से हर एक के मन में एक शांत जीवन जीने के लिए भीतरी सद्भाव और बेहतर पारस्परिक संबंध की चाहत है। परंतु वास्तव में कोई भी यह नहीं जानता कि परिवर्तन की इस प्रक्रिया को शुरू कैसे किया जाए।
एक प्रसिद्ध कहावत है " जैसा सोचोगे, वैसा बनोगे" अत : परिवर्तन की इस प्रक्रिया को हमें सर्वप्रथम अपनी सोच में बदलाव लाकर आरंभ करना होगा। सोच में परिवर्तन अनिवार्यत : हमारी वाणी और कर्मों में परिवर्तन आता है, फल स्वरुप हमारे दृष्टिकोण और चेतना के स्तर में परिवर्तन आता है और हम एक बदले हुए व्यक्ति बनाकर सभी की दृष्टि में उभर आते है। हमारा स्वभाव एकदम शांत हो जाता है दृष्टिकोण एकदम स्पष्ट और सकारात्मक। हमारे भीतर भय की जगह आत्मविश्वास आ जाता है और प्रतिशोध,घृणा के बदले प्रेम तथा सेवा का भाव का निर्माण हो जाता है। दूसरों की सेवा करना और सभी का अच्छा करने की भावना हमारे जीवन का उद्देश्य बन जाता है। हम शरीर की चेतना से ऊपर उठकर आत्म चेतना के उच्च और पवित्र स्तर पर स्वयं को स्थिर कर देते हैं। तो देर किस बात की? चलिए, विश्व परिवर्तन करने वाली इस स्व परिवर्तन की जादू यात्रा का प्रारंभ करें, क्योंकि इस महान यात्रा में होना है, स्व का कल्याण एवं उद्धार।
धन्यवाद
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