शिक्षक ज्ञान वह प्रज्वललित दीप है, जिसके प्रकाश से अज्ञान का अंधकार मिट जाता है। शिक्षक वह मूर्तिकार के समान होता है, जो विद्यार्थी के चरित्र को तराशकर उसे एक बेहतरीन आकार देता है। शिक्षक उस माली की तरह होता ह, जो अपने विद्यार्थी की देखभाल अर्थात मानसिक,शारीरिक एवं अध्यात्मिक रूप से उन्हें मजबूत पेड़ बनने में मदद करता है। शिक्षक वह दर्पण की भांति है, जो विद्यार्थी को उसकी वास्तविक क्षमता और सामर्थ्य दिखाता है, जिससे वह खुद खुद को बेहतर बना सके।
अर्थात राष्ट्र के निर्माण में शिक्षक की अतुलनीय भूमिका है। गुरु के आभाव में राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है।
आज इस निबंध में मैं आप सभी के साथ से टीचर्स डे के विशेष अवसर पर एक निबंध साझा करना चाहूंगी। जिसका नाम है - राष्ट्र के निर्माण में शिक्षक की भूमिका।
किसी भी देश की सबसे बड़ी ताकत वहां की सशक्त नागरिक ह है। सशक्त नागरिक अर्थात ऐसे लोग जिनके पास ज्ञान हो, जिनके पास अपनी मेहनत से देश को सफल बनाने की अपार क्षमता हो, गलत के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद करने की शक्ति बुलंद हो ... वह ही एक सशक्त नागरिक है।
राष्ट्र और उन्नत राष्ट्र में अंतर है। राष्ट्र लोगों से मिलकर बनता है लेकिन उन्नत राष्ट्र शिक्षित लोगों से मिलकर बनता है।मनुष्य को शिक्षित एवं मजबूत बनाने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमका निम्नलिखित है :
1. ज्ञान :शिक्षक ज्ञान के प्रतीक है। वे अपने ज्ञान से विद्यार्थी को शिक्षित मनुष्य बनाते है। शिक्षिय समाज ही सबसे बड़ी सम्पति है। गुरु अपने ज्ञान से राष्ट्र को प्रकाशित करते है और एक सशक्त समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है।
शिक्षक समाज के महत्वपूर्ण स्तम्भ है, क्युकी शिक्षक ना केवल पुस्तकीय ज्ञान प्रदान करते है अपितु जीवन के विभिन्न सीख( लाइफ लेसन ) भी सिखाते है। जिससे विद्यार्थी भावी जीवन के परेशानियों से लड़ने के लिए तैयार होते है।
2. नैतिक मूल्य :स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था - हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र बने, मानसिक बल बढ़े, बुद्धि का विकास हो और जिससे मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सके।
स्वामी जी के सपने को पूर्ण करने में महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षक की है। वे अपने ज्ञान , बुद्धि और कौशल से विद्यार्थी को सशक्त बना सकते है।
मानसिक, बौद्धिक और अध्यात्मिक रूप से सशक्त बनने के लिए शिक्षा में नैतिक मूल्य पर आधारित शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। जिससे विद्यार्थी ईमानदारी, अनुशासन, सहानुभूति इत्यादि का अनुसरण कर सके। नैतिक मूल्य महत्वपूर्ण एवं सार्थक गुण है, जिससे शिक्षा का सम्पूर्ण आधार पूर्ण होता है।
छोटे कक्षा से ही शिक्षक विद्यार्थियों को नैतिक मूल्य सिखाते है। जिससे धीरे - धीरे विद्यार्थियों का चरित्र का निर्माण होता है।
3. समाजिक जागरूकता : शिक्षक समाज के मजबूत नींव है। समाज में हो रहे विभिन्न दुर्घटनाओं, समस्याओं, समस्याओं समाधान इत्यादि से संबंधित विभिन्न बातों को विद्यार्थियों के साथ साझा करना चाहिए, जिससे विद्यार्थी में समाज के प्रति सोचने - समझने की शक्ति में विकास होता है। यह जागरूकता उन्हें समाज में सुधार लाने के लिए प्रेरित करती है।
यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है। प्रत्येक टीचर्स से यही अनुरोध है, कि वे स्टूडेंट्स के साथ समाज के पतन और उन्नति दोनों के बारे में जानकारी साझा करना चाहिए।
3. नवाचार और रचनात्मका : समय की रफ्तार में दुनिया में बहुत बदलाव आया रहा है। क्रिएटिव फील्ड से लेकर एआई इत्यादि हर क्षेत्रों में नवीनता आ रही है। शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका है, कि वे विद्यार्थी को पुस्तकीय ज्ञान के साथ नवाचार, रचनात्मकता इत्यादि का भी ज्ञान साझा करते है।
ऐसे अनेक विद्यार्थी है, जिन्हें पढ़ाई के अतिरिक्त खेलकूद, नाटक, चित्रकला इत्यादि में रूचि है। एक सद्गुरू विद्यार्थी के रचनात्मकता कला को भी प्रोत्साहित करते है। साथ ही साथ वे छात्रों को नई सोच और आविष्का करने के लिए प्रेरित करते है, जो भविष्य में देश में योगदान कर पाएंगे।
मैं आपको खुद का अनुभव साझा करना चाहूंगी। अभी मैं कॉलेज( फर्स्ट ईयर ) में पढ़ रही हूं। कॉलेज के फर्स्ट डे पर सर ने सभी से कहा है कि केवल पढ़ना ही नहीं बल्कि अपने हुनूर को सबके सामने प्रकट करना है। एक्स्ट्राकर्रेंकुलम में भाग लेना है, नए - नए नवाचरों से स्वयं को अपडेट रखना और हमेशा सीखते रहना है।
अर्थात शिक्षक विद्यार्थियों को उनकी कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता को बढ़ावा देने में मदद करते है।
5. नेतृत्व : आज के विद्यार्थी ही कल के कर्णधार है। आज के विद्यार्थी ही कल के नेता है। मध्यकाल के प्रसिद्ध कवि कबीर जी ने कहा था- साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय, सार - सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय"अर्थात इस संसार में ऐसे सज्जनों की जरूरत है, जैसे अनाज साफ करने वाला सूप होता है, जो सार्थक को बचा ले और निर्थक को उड़ा दे। शिक्षक विद्यार्थी के अवगुणों को दूर करने का प्रयास करते है। शिक्षा,कौशल के साथ ही साथ नेतृत्व के गुणों को विकसित करते हैं, जिससे विद्यार्थी समाज और राष्ट्र की अगुवाई करने में सक्षम बन सकें। अपने विचारों को सभी के समक्ष निडर भाव से प्रकट कर पाए।
भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र देश है। लोकतंत्र को मजबूत करने में शिक्षक की महत्वपूर्ण भूमिका है। वे विद्यार्थी को लोकतान्त्रिक मूल्यों जैसे समानता, न्याय, स्वतंत्रा के महत्व के बारे में सिखाते है। जिससे डेकोक्रेटिक वैल्यू का प्रसार होता है।
6. स्वतंत्र चिंतन : गलत को गलत कहने की ताकत और गलत के विरुद्ध लड़ने की शक्ति माता - पिता के अलावा गुरु से भी मिलती है। अपने विचारों को प्रभावशाली एवं उम्दा तरिके से प्रकट करने का जोश हमें शिक्षक से मिलता है।
स्कूल लेवल से लेकर कॉलेज स्तर पर विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है। उन प्रतियोगिताओं में भाग लेने से विद्यार्थियों का कौशल में निखरता है। शिक्षक विद्यार्थियों को स्वतंत्र रूप से सोचने और अपनी राय बनाने के लिए प्रोत्साहित करते है। यह महत्वपूर्ण कौशल भविष्य में राष्ट्र के लिए बेहतर निर्णय लेने में मददगार साबित होता है।
7. वैश्विक दृष्टिकोण : शिक्षक विद्यार्थियों को वसुधैव कुटुंबकम के भाव को जागृत करते है। जिस प्रकार देश के महान व्यक्तित्व महात्मा गाँधी जी पुरे सम्पूर्ण जगत को अपना देश मानते थे, ठीक उसी प्रकार यह भावना को मुख्य आधार बनाकर शिक्षक विद्यार्थियों को वैश्विक मुद्दों, चुनौतियों एवं अवसरों के बारे में जानकारी देकर उन्हें वैश्विक दृष्टिकोण अर्थात व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
वैश्विक दृष्टिकोण के जरिये अंतर्राष्ट्रीय संबंध मजबूत हो सकता है।
इन सभी महत्वपूर्ण भूमिकाओं के माध्यम से शिक्षक राष्ट्र निर्माण के विभिन्न पहलुओं में महत्वपूर्ण भूमिका देते है। शिक्षक का कार्य केवल शिक्षा प्रदान करना ही नहीं, बल्कि एक सशक्त, सभ्य एवं सफल समाज का निर्माण करना भी है।
अंत में
कबीर जी ने भी कहा था - सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत उघाड़िया, अनंत दिखावनहार।।
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनायें 🙏
धन्यवाद
काजल साह
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