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16/11/2024 Harpreet kaur Relationship Views 144 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
बाल-विवाह को पुनः प्रचलित नहीं किया गया, तो जोखिम बढ़ सकता है

कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि यदि बाल-विवाह को पुनः प्रचलित नहीं किया गया, तो जोखिम बढ़ सकता है। उनके अनुसार, जब एक महिला पूरी तरह से जागरूक होती है, तो वह केवल यौन सुख को प्राथमिकता दे सकती है, और माँ बनने में रुचि नहीं रखती। इसलिए, वे सुझाव देते हैं कि बचपन में ही विवाह करा दिया जाए, ताकि उसे पता ही न चले और वह कब माँ बन गई, इसका एहसास तक न हो। ऐसा माना जाता है कि पूर्वी समाजों में बाल-विवाह का एक कारण यह भी था कि यदि एक महिला उम्र में बड़ी होकर और यौन सुख का अनुभव करने लगेगी, तो वह माँ बनने की प्रक्रिया से दूर भाग सकती है। उसे यह नहीं पता होता कि मातृत्व के अनुभव में भी एक गहरा संतोष है। यह अनुभूति केवल माँ बनने के बाद ही समझ में आती है। माँ बनते ही एक महिला एक नए स्तर का आनंद प्राप्त करती है, जैसे कि उसने एक गहरी, आध्यात्मिक अनुभूति पा ली हो। माँ और बच्चे का यह बंधन इतना मजबूत होता है कि वह अपने बच्चे के लिए सब कुछ त्यागने को तैयार रहती है। इस रिश्ते की गहराई इतनी है कि माँ अपनी संतान का हर दर्द अपने ऊपर ले सकती है, लेकिन पत्नी का रिश्ता पति के प्रति ऐसा नहीं होता। कई बार यह भी देखा गया है कि जब पति-पत्नी का रिश्ता गहराई से जुड़ता है, तो पति पत्नी के लिए बेटे जैसा हो जाता है। जब पति प्रेम में डूबकर पत्नी के करीब आता है, तो उसके हाथ स्वतः ही पत्नी के स्तन की ओर बढ़ते हैं। यह मात्र शारीरिक आकर्षण नहीं है, बल्कि उसके भीतर का वही पुराना बच्चे का प्रेम है जो अपनी माँ के पास लौटता है। इसी तरह, स्त्री का हाथ पुरुष के सिर की ओर बढ़ता है, जैसे वह एक बच्चे के सिर को सहला रही हो। अगर प्रेम को आध्यात्मिक गहराई तक बढ़ाया जाए, तो पति-पत्नी का संबंध अंततः माँ-बेटे जैसा बन जाता है। पति-पत्नी का यह रिश्ता यात्रा का प्रारंभ है, पूर्णता नहीं। इसलिए उनके बीच अक्सर तनाव और संघर्ष बना रहता है, क्योंकि वे यात्रा में होते हैं, जहाँ संतोष नहीं मिलता। पति-पत्नी का यह संघर्ष अनवरत चलता है। कभी-कभी दोनों सोचते हैं कि शायद दूसरा साथी सही होता तो यह सब ठीक हो जाता, लेकिन यह सिर्फ भ्रम है। दुनिया भर के जोड़ों का यही अनुभव है कि किसी नए साथी से भी थोड़ी राहत मिलती है, लेकिन अंततः स्थिति वही रहती है। पश्चिमी समाजों में तलाक की बढ़ती संख्या इसका प्रमाण है। वहाँ भी लोग अनुभव करते हैं कि नया साथी कुछ समय बाद पुराने जैसा ही महसूस होने लगता है। असल में, समस्या व्यक्ति में नहीं, बल्कि इस यात्रा में है। जब तक पति-पत्नी अपने संबंध को एक नई गहराई तक नहीं पहुँचाते, यह संघर्ष बना रहता है।

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