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20/06/2023 Kajal sah Romance Views 405 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
निराला जी के माध्यम से रचित कविता

कविता : सन्ध्या सुंदरी दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है वह सन्ध्या - सुंदरी धीरे - धीरे धीरे। तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास मधुर - मधुर हैं दोनों उसके अधर किन्तु जरा गंभीर नहीं है उनमें हास - विलास। हँसता है तो केवल तारा एक गुंथा हुआ उन घुंघराले काले - काले बालों से हृदय राज्य की रानी की वह करता है अभिषेक। अलसता की -सी लता किन्तु कोमलता की वह कली, सखी नीरवता के कंधे पर डाले बाँह, छाँह - सी अंबर - पथ से चली। नहीं बजती उसके हाथों में कोई वीणा नहीं होता कोई अनुराग - राग - आलाप, नूपुरों में भी रुन - झुन, रुन - झुन नहीं सिर्फ एक अव्यक्त शब्द -सा चुप, चुप - चुप, है गूंज रहा सब कहीं - व्योम मण्डल में - जगतीतल में - सोती शांत सरोवर पर उस अमल कामलिनी - दल - में सौंदर्य गवृीता सरिता के अति बहुत फैले हुए वक्ष : स्थल में - धीर वीर गंभीर शिखर पर हिमगिरी -अटल - अचल -में उत्ताल तरंगघात -प्रलय -धन - गर्जन -जलधि - प्रबल में - क्षिति में - जल में -नभ में - अनिल -अनल में - सिर्फ एक अव्यक्त शब्द -सा चुप, चुप है गूंज रहा सच कहीं - और क्या है? कुछ नहीं? मदिरा की वह जीवीं को वह सस्नेह प्याला एक पिलाती सुलाती उन्हें अंक पर अपने दिखलाती फिर विस्मृति के वह अगनित मीठे सपने। आधे रात्रि की निश्चलता में हो जाती जब लीन, कवि का बढ़ जाता अनुराग, विरहाकुल कमनीय कंठ से आप निकल पड़ता तब एक विहाग। धन्यवाद

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