आप किसी और से प्रेम करते हो आपका विवाह किसी और के साथ होता है।आप किसी और के साथ जिंदगी बिताने का सपना लेकर किसी और के साथ जिंदगी बिता रहे होते हो। किसी और का ख्याल लेकर किसी और को स्पर्श कर रहे होते हो। हमारे समाज में ज्यादातर प्रेम का हश्र यही होता है इसके पीछे कारण होता है जाति,धर्म और प्रेमियों में थोड़े साहस की कमी।
ऐसे में आपको अमृता-साहिर और इमरोज की कहानी सुनने को मिलती है और आपको वो अजूबे जैसे लगते हैं क्योकि वो आपके समाज के बने बनाये खांचे में फिट नही बैठते।ऐसी जाने कितनी अमृता होंगी जो अपने पार्टनर से अपने पहले प्यार के बारे में बताना चाहती होंगी लेकिन उनका पार्टनर इमरोज जैसा नही है ,वो बाहर भले से कितने सम्बन्ध बनाये लेकिन उसे ये मंजूर नही होगा कि उसकी प्रेमिका के मन मे किसी का ख्याल भी आये। यहां ईमानदारी से रिश्ता स्वीकार करना सबसे बड़ा पाप माना जाता है पीठ पीछे आप कुछ भी करो।
प्रेम बेहद जटिल मामला है,सबके अनुभव उसे लेकर अलग-अलग हैं। प्रेम कब किससे और किस मोड़ पर होगा ये हमारे नियंत्रण के बाहर की बात है ,ये बस होता है तो हो जाता है।इमरोज ने एक जगह कहा कि मुझे पता है कि अमृता साहिर से प्रेम करती है लेकिन मुझे इससे फर्क नही पड़ता क्योकि मैं अमृता से प्रेम करता हूँ। प्रेम कोई व्यवसाय तो है नही कि जितना आप इन्वेस्ट कर रहे बदले में आपको भी उतना ही मिले। आप किसी से प्रेम करते हैं तो उसका साथ और उसकी खुशी आपके लिए सबसे जरूरी है। ये बात इमरोज समझ रहे थे। उन्होंने कहा कि पीठ मेरी है और मैं अमृता का तो उस पर वो जो चाहे लिख सकती हैं। हमारे समाज मे विवाह संस्था ऐसी है कि यहां शरीर से मन की यात्रा होती है मन से शरीर की नही।शरीर से मन की यात्रा में मन मिलेगा या नही इसकी कोई गारंटी नही होती है लेकिन वो हमारे समाज मे मान्य है और विवाह करके भले आप रिश्तों के बोझ को ढोए चोरी-छिपे कितने भी अनैतिक कार्य करें सब जायज है लेकिन अमृता इमरोज और साहिर जैसी कहानी हमे हजम नही हो सकती।
किसी के निजी जीवन में ताक झांक करना ही बेहूदगी है क्योकि जब दो लोग सहज है तो आप उन्हें सर्टिफिकेट देने वाले कौन है करना है तो उनके लिखे का मूल्यांकन कीजिये।
ये सच है कि हमारे समाज मे प्रेम और विवाह को लेकर जो रूढ़ियाँ है उस हिसाब से तो अमृता चरित्रहीन स्त्री मानी जायेगी और इमरोज को नामर्द समझेंगे लोग क्योकि दिमाग वालो(गोबर दिमाग)को ये समझ आएगा नही कि ऐसा रिश्ता भी हो सकता,ऐसा पार्टनर भी मिल सकता। हिंदी के दो बड़े कवियों घनानन्द और बोधा को दरबार मे नाचने वाली वेश्याओं से प्रेम हुआ था और उनके प्रेम में छिछोरापन नही था उन्होंने अपनी कविताओं में अपनी प्रेमिका को अमर कर दिया है । प्रेम सीधे-सीधे ह्रदय का मामला है वहां बुद्धि वालो का काम नही है इसलिए अकबर इलाहाबादी ने ही लिखा कि-
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