कुछ तो बात किया कर दु:ख को बांट लिया कर भीड़ में खो जायेगे कभी - कभी तो मिल लिया कर रूठ के तू उससे न खफा - खफा रहकर तेरे बिना तन्हा कोई कैसे जियेगा इतना तो सोच लिया कर गर वो ह बेवफा उससे तू - तो वफ़ा कर किया कर उसकी होंगी कोई मज़बूरी उससे न तू गिला कर हर वक्त तू आँखो को नम न यू किया कर दिल का है कसूर सजा आँखो को ना दिया कर कई चेहरे लिए फिरते है लोग सावधान रहा कर इनको पहचानना है तो कई बार इनसे मिल लिया कर धन्यवाद मेरी दादी के माध्यम से रचित गज़ल।