कविता : तेरे बाद भी
आँखे लुटा रही है, गौहर तेरे बाद भी
मुरझा सके न जख़्मे जिगर तेरे बाद भी
ठहरे कहा कि छवि बुलाती नहीं हमें
करते है धुप - धुप सफर तेरे बाद भी।
तू खुद ही नहीं मगर तेरी तस्वीर है दिल में
हमने सजा के रखा है घर तेरे बाद भी
हालांकि तुझसे मिलन कि उम्मीद
भी नहीं रहता है, इंतजार मगर तेरे बाद भी
तू यह समझ रही थी, कि मैं टूट जाऊंगा
जारी है जिंदगी का सफर तेरे बाद भी
सागर अपना दर्द सुनाने के वास्ते
अपना किया गजल का हुनर तेरे बाद भी।
कविता : दरवाजा खुला है
जब दुनिया से जी भर जाये
सब हो जाये बेगाने
तुम जरूर चले आना
दरवाजा खुला है।
मुस्कुराते हुए कभी यादे
कभी आँखे भर आये
तो जरूर चले आना
दरवाजा खुला है।
फूलों को चुनते - चुनते
यदि कांटे चुभ जाये
वे हिचक चले आना
क्युकी दरवाजा तुम्हारे लिए सदैव खुला है।
धन्यवाद
यह कविताएं मेरी दादी के माध्यम से रचित है।
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