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29/06/2023 Kajal sah Family Views 363 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
कविता : अग्र तू ही

तेरे संग नित अग्र बढ़ना चाहती हूं तेरे सजोये हुए हर लालसा को परिपूर्ण करना चाहती हूं जो बह गए तेरे लोचन से नेत्रजल अब उसे सुरभोग बनाना चाहती हूं। ओ मेरी पन्ना धाय ओ मेरी जन्मधात्री गुल में खिली वह मनमोहक मुकुल मेरी लहमा की सौंदर्य शान ओ मेरी अभिराम माँ तेरे लिए सुंदर जग बनाना चाहती हूं मेरी हर वेदना को तूने मुस्कुराके सुलभ बनाया खुद सो जाती ठंडे जमीन पर मुझे सुलाती बिस्तर पर खुद के शयन को उत्सर्ग करके मेरी सुप्ति को पूर्ण करती तू माँ मुझे रात्रि में लोरी गाके तू सुलाती मेरी हरेक विपदा से तू परमेश्वर से तक तू संघर्ष कर जाती खुद पहन लेती पुराने वस्त्र मुझे हरदम पहनाती नये वस्त्र मेरी इच्छा, अभिलाषा को हमेशा पूर्ण करती तू माँ माँ अब तेरे सजोये हुए हर स्वप्न को अब तेरा बनाना चाहती हूं माँ तेरे लिए मैं सुंदर जग बनाना चाहती हूं। धन्यवाद काजल साह : स्वरचित

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