जन्नत की सैर में
मैंने किसी फरिश्ते को देखा है
पैर में छाले लेकर
किसी मजदूर को
चलते देखा है
दुख, दर्द, पीड़ा व्यथा
सारे गमों को सहकर
अपने बच्चों के लिए
एक बाप को हँसते देखा है।
सुख, चैन, सपने, नींद
एक पिता सब त्याग देता है
खुद ना खाकर
अपने बच्चों को भरपेट खिलाता है
अपने कंधों पर बैठाकर
पूरी दुनिया घूमाता है।
जन्नत की सैर में
रब के रूप में
मैंने अपने पापा को देखा है
मेरे सपनों को भी पापा
.... उड़ना सिखलाते है
जन्नत की सैर कराते है
मेरे पापा दोस्त बन जाते है।
धन्यवाद
काजल साह
|
K
|
30.12.2023
Kajal sah
Readers
356
|
रिश्ते में मिठास कैसे लाये? 
पति और पत्नी का रिश्ता सबसे बहुमूल्य, सशक्त और उत्तम रिश्ता होना चाहिए। किसी भी .....
|
K
|
29.06.2023
Kajal sah
Readers
243
|
कविता : अग्र तू ही  
तेरे संग नित अग्र बढ़ना चाहती हूं
तेरे सजोये हुए हर लालसा को
परिपूर्ण करना चाह .....
|
K
|
28.06.2023
Kajal sah
Readers
246
|
कविता : फतेह 
माँ तुम मेरी शक्ति हो
मेरी हर फतेह की आस हो मेरी हर मुस्कुराहट की
आहट हो
जब .....
|
|