झारखंड में अगर आपको नौकरी चाहिए, परीक्षा में गड़बड़ी पर आवाज उठानी हो, या फिर नियुक्ति की मांग करनी हो, तो आंदोलन करना ही एकमात्र विकल्प बन चुका है। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या अब राज्य में किसी की मांग को सुनने के लिए आंदोलन और जान गंवानी पड़ेगी? हालिया घटना बोकारो जिले से सामने आई है, जहां एक आंदोलन के दौरान पुलिस द्वारा की गई लाठीचार्ज में एक युवक की मौत हो गई।
इस घटना के कई वीडियो सामने आए हैं, जिनमें सबसे पहले बोकारो विधायक श्वेता सिंह का वीडियो है, जिसमें वह कंपनी के अधिकारियों पर आरोप लगाती नजर आ रही हैं। इसके बाद दूसरा वीडियो सामने आया, जिसमें जयराम महतो और श्वेता सिंह के समर्थकों के बीच झड़प होती दिख रही है। तीसरा वीडियो जयराम महतो का बयान है, और चौथा वीडियो जिसमें मृतक की मां अपने मृत बेटे के चेहरे पर लगे खून के निशान को मिटा रही है। इस वीडियो ने सभी के दिलों को हिला कर रख दिया है।
तो ऐसे, इस खबर के जरिये आपको इस पूरे घटनाक्रम से रूबरू कराते हैं, जो न केवल बोकारो बल्कि पूरे झारखंड में एक गंभीर सवाल खड़ा कर रहा है कि क्या अब आंदोलन के बाद मौत औऱ मुआवजा ही राज्य के हर मुद्दे का हल बन गया है?
फिलहाल मामला शुरू होता है 3 अप्रैल को जब विस्थापित युवकों ने एडीएम बिल्डिंग के सामने नौकरी की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया। सुबह-सुबह सुरक्षा बलों और आंदोलनकारियों के बीच हुई धक्का-मुक्की के बाद शाम होते-होते स्थिति काफी बिगड़ गई। जिसके बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को हटाने का प्रयास किया, और बल का प्रयाग किया जिसके बाद प्रदर्शन कर रहे विस्थापित युवक भी आक्रोशित हो गए. जिसके बाद सीआईएसएफ जवानों ने लाठीचार्ज किया, जिससे एक दर्जन से अधिक प्रदर्शनकारी घायल हो गए, और इनमें से प्रेम महतो की मौत हो गई। मौत के अगले दिन यानी 4 अप्रैल को पूरे बोकारो में भारी हंगामा करते हुआ शहर को पूरी तरह से बंद कर दिया। और पुलिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। बंद समर्थकों ने गाड़ियों में आग लगा दी और एक झोपड़ी को भी आग के हवाले कर दिया।
हंगामे के कारण बोकारो स्टील प्लांट का मेन गेट बंद कर दिया गया, जिससे करीब 5000 कर्मचारी 18 घंटे तक प्लांट में फंसे रहे और उनका काम ठप हो गया। इसके बाद जिला प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए बीएसएल के मुख्य महाप्रबंधक (एचआर) हरि मोहन झा को गिरफ्तार कर लिया, और बीएसएल प्रबंधन ने विस्थापितों की मांगों को स्वीकार कर लिया। बीएसएल ने यह घोषणा की कि सभी अप्रेंटिस प्रशिक्षुओं को 21 दिनों के भीतर नियुक्ति दी जाएगी, साथ ही, मुआवजे के तौर पर मृतक के परिजनों को 20 लाख रुपए और घायलों को इलाज की मुफ्त सुविधा और 10 हजार रुपए का मुआवजा दिया जाएगा।
हालांकि, विस्थापितों ने मृतक के परिवार को 50 लाख रुपये मुआवजा और नौकरी देने का प्रस्ताव रखा, जिस पर बीएसएल ने विचार करने के लिए समय मांगा। इसके बाद त्रिपक्षीय वार्ता विफल हो गई और बोकारो विधायक श्वेता सिंह ने आंदोलन को जारी रखने का ऐलान किया। इसके बाद चास अनुमंडल में धारा 163 लगा दिया गया। धारा लागू होते ही पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी रेस हो गए। बीएनएस की धारा 170 की प्रयोग करते हुए बीएस सिटी पुलिस ने इंस्पेक्टर सुदामा कुमार दास के नेतृत्व में बोकारो विधायक श्वेता सिंह को समर्थकों के साथ हिरासत में ले लिया। उन्हें सर्किट हाउस में रखा गया है। फिलहाल पूरे इलाके में पुलिस प्रशासन को तैनात किया गया है शांती माहौल बनाया जा रहा है।
लेकिन इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राज्य में किसी की मांग पूरी करने के लिए आंदोलन और जान की बलि देनी जरूरी हो गई है? और इन सबके बाद मुआवजा देना और परिवार वालों को नौकरी देना ही एक मात्र उपाय है?
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