वैसे तो मां के लिए कोई दिन नहीं होता क्योंकि वो तो हर पल हमारे साथ हमारी यादों में है।
जिस मोबाइल के साथ मैं आज घंटों बिताता हूं, उसी मोबाइल पर अपनी मां की आवाज़ सुन न सका। मैंने हर किसी से अपने दिल की बात कही पर उसको कह न सका और न उसके दिल की सुन सका।
वो इतनी करीब रही की उसे कभी खत न लिख पाया और आज इतनी दूर है कि मन भी उस तक पहुंच नहीं पाता।
मैं भी उससे लम्बी बातें करना चाहता था, फोन पर अपना हालचाल बताना चाहता था और उसका जानना चाहता था।
आज जब किसी बेटे को उसकी मां से बातें करता देखता हूं तो खुद को कोसता हूं, कि मैंने ऐसी क्या गलती की थी की वो मुझसे इतनी दूर चली गई।
मैं उसे ये बताना चाहता था कि, मां मैं कमाने लगा हूं, मैं खाना भी बना लेता हूं। मैं बताना चाहता था कि मैं बड़ा तो हो गया हूं पर, उससे कोई फर्क नहीं पड़ा है, मुझे आज भी तेरी याद हर वक्त आती है।
मैं उसे बताना चाहता था कि अब गलतियां करने को जी नहीं चाहता क्योंकि, तु डांटने को नहीं है, मारने को नहीं है, समझाने को नहीं है।
मैं कपड़े धोना और उसे इस्त्री करना भी सिख गया हूं, जूते का फीता भी खूद बांध लेता हूं और उसे पौलिस भी कर लेता हूं।
मैं अपने हर जीत और कामयाबी को गर्व से बताना चाहता था और अपनी हर हार और असफलताओं पे उसकी सांत्वना लेना चाहता था।
अब कोई भी अच्छे काम में वो उत्साह नहीं होता क्योंकि उन अच्छे कामों के लिए कोई माथे पर चूमने वाला नहीं है।
मैं तुम्हें बहुत सी पुरानी बातें याद दिलाना चाहता था।
आंगन में शाम को उसकी गोद में सर रखकर, उसके आंचल से चेहरे को ढक कर सोना बहुत याद आता है मां।
रातों को अक्सर तेरे हाथों से रोटियां खाना भी बहुत याद आता है मां।
तुझे पता है मां, अब मुझे बिमार होने में भी डर लगता है, पहले तो जब भी बिमार होता था, तु अपने पास बुला लेती थी और सारी तकलीफ दूर हो जाती थी।
लो ये सारी बातें मैं तुझसे फोन पर करना चाहता था, पर ये तो मैंने पूरा खत ही लिख डाला।
अमर नाथ सिंह चौहान।
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