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24/04/2023 Dev Prakash Hobbies Views 301 Comments 0 Analytics Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
अजीब ख़्वाब था

अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थी वो इक परी जो मुझे सब्ज़ करने आई थी वो इक चराग़-कदा जिस में कुछ नहीं था मेरा वो जल रही थी वो क़िंदील भी पराई थी न जाने कितने परिंदो ने इस में शिरकत की कल एक पेड़ की तरक़ीब-ए-रू-नुमाई थी हवाओ आओ मिरे गाँव की तरफ देखो जहाँ ये रेत है पहले यहाँ तराई थी किसी सिपाह ने ख़ेमे लगा दिये है वहाँ जहाँ ये मैं ने निशानी तिरी दबाई थी गले मिला था कभी दुख भरे दिसम्बर से मिरे वजूद के अंदर भी धुँद छाई थी तहजीब हाफी

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