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24/04/2023 Dev Prakash Hobbies Views 266 Comments 0 Analytics Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे

इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे वर्ना हर चीज़ आरजी़ है मुझे एक साया मिरे तआकुब में एक आवाज़ ढूँडती है मुझे मेरी आँखो पे दो मुक़दस हाथ ये अंधेरा भी रौशनी है मुझे मैं सुख़न में हूँ उस जगह कि जहाँ साँस लेना भी शाइरी है मुझे इन परिंदो से बोलना सीखा पेड़ से ख़ामुशी मिली है मुझे मैं उसे कब का भूल-भाल चुका ज़िंदगी है कि रो रही है मुझे मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ पहली बारिश ही आख़िरी है मुझे तहजीब हाफी

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