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18/08/2024 Kajal sah Awareness Views 227 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
जन - गीत ( सुमित्रानंदन पंत )

जीवन में फिर नया विहान हो एक प्राण, एक कंठ गान हो बीत अब रही विषाद की निशा दिखने लगी प्रयाण की दिशा गगन चूमता अभय निशान हो! हम विभिन्न हो गये विनाश में हम अभिन्न हो रहे विकास में एक श्रेय, प्रेम अब समान हो। शुद्ध स्वार्थ काम - नींद से जगे, लोक - कर्म में महान सब लगें, रक्त में उफान हो, उठान हो। शोषित कोई कहीं न जन रहें पीड़न - अन्याय अब न मन सहे जीवन - शिल्पी प्रथम, प्रधान हो। मुक्त व्यथित, संगठित समाज हो गुण ही जन - मन किरीट ताज हो, नव - युग का अब नया विधान हो। धन्यवाद सुमित्रानंदन पंत

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