हरदम का साथ कहाँ, सबको जाना ही है
ज़िंदगी की रस्में हैं, उन्हें निभाना ही है
मंज़र पल में बदलता, कहीं भी मुकाम नहीं
बादल हों चाहें ग़म के, हमें मुस्कुराना ही है
आसमान में उड़ते परिंदे, हार मानते कहाँ
पतंगों सा ख़्वाबों को, हमें उडाना ही है
सूखता शजर गर्मियों में, बारिश में खिल उठता
कितनी भी मुश्किलें हों, गीत गुनगुनाना ही है
मिटटी में जिस्म होगा, रह जायेंगे मीठे बोल
जो सरगम अमर हो जाए, वो तो गाना ही है
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16.12.2023
Kajal sah
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Kajal sah
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