दर्द दिया है अश्रु स्नेह है बाती बैरिन श्वास है जल-जलकर बुझ जाऊँ मेरा बस इतना इतिहास है ! मैं ज्वाला का ज्योति-काव्य चिनगारी जिसकी भाषा किसी निठुर की एक फूँक का हूँ बस खेल-तमाशा पग-तल लेटी निशा भाल पर बैठी ऊषा गोरी एक जलन से बाँध रखी है साँझ-सुबह की डोरी सोये चाँद-सितारे भू-नभ दिशि-दिशि स्वप्न-मगन है पी-पीकर निज आग जग रही केवल मेरी प्यास है ! जल-जलकर बुझ जाऊँ मेरा बस इतना इतिहास है !!