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11/01/2025 arif ahmad Story Views 181 Comments 0 Analytics Video Hindi DMCA Add Favorite Copy Link
राधेश्याम

कुछ महीने लंदन में अपनी बेटी के साथ रहने के बाद राधेश्याम ने फैसला किया कि अब वापस भारत लौटना है। बेटी और दामाद ने उन्हें बहुत समझाया कि भारत में अब कोई खास रिश्तेदार नहीं हैं, जो उनका ध्यान रख सके, लेकिन राधेश्याम को मानना ही नहीं था। उन्होंने कहा कि उनकी पत्नी सरला उन्हें बहुत याद आ रही हैं। पिछली रात उनके सपने में आकर उन्होंने पूछा भी कि "वापस कब आओगे?" यह सोचकर राधेश्याम ने अपना निर्णय पक्का कर लिया। बेटी श्रुति ने फिर समझाया कि माँ को गुज़रे हुए दो साल हो चुके हैं और घर भी कब से बंद पड़ा है, पर राधेश्याम का मन नहीं बदला। अंततः, उनके दामाद ने भारत का टिकट बुक करवा दिया और उन्हें सलाह दी कि किसी किराएदार को रख लें या किसी रिश्तेदार को अपने साथ बुला लें। छह महीने बाद भारत पहुँचकर राधेश्याम को अच्छा लग रहा था। दिल्ली एयरपोर्ट से बरेली के लिए टैक्सी ली और रास्ते भर पुरानी यादों में खोए रहे। उस घर में उनका बचपन बीता, सविता से शादी हुई और बेटी श्रुति भी वहीं पैदा हुई थी। बरेली को छोड़कर दिल्ली शिफ्ट हुए कई साल हो गए थे, पर अब सबकुछ याद आ रहा था। घर पहुँचकर देखा तो चारों तरफ धूल-मिट्टी जमी थी। थकान के कारण उन्होंने थोड़ी देर सोफे पर आराम किया। दो घंटे बाद जब जागे तो उन्हें ऊपर से आवाज़ें सुनाई दीं। ऊपर जाकर देखा तो कबूतर, चिड़ियाँ और गिलहरियों ने घर को घोंसलों से भर दिया था। उन्होंने देखा, जैसे यह सब उन्हें ही पहचानते हों। राहुल, जो उनके पुराने पड़ोसी शेखर जी का बेटा था, ने उनकी बहुत मदद की। उसने घर की सफाई करवाई, बिजली और पानी की व्यवस्था ठीक करवाई, और बाजार से जरूरी सामान भी ला दिया। धीरे-धीरे यह राधेश्याम का नियम बन गया कि सुबह की सैर से लौटकर वह पक्षियों को दाना डालते, गिलहरियों को खाना खिलाते और उनके साथ समय बिताते। उन्होंने अपने इन नए साथियों के नाम भी रख दिए। "रानी चिड़िया," "सोनी गौरैया," "लक्का कबूतर," और "नीलू गिलहरी।" एक दिन, सैर से लौटते वक्त एक कुतिया और उसका बच्चा उनके पीछे घर तक आ गए। राधेश्याम ने उन्हें दूध और ब्रेड खिलाया। धीरे-धीरे वे भी उनके परिवार का हिस्सा बन गए, और उन्होंने उन्हें नाम दिया "झूरी" और "झबला।" कुछ ही दिनों में एक घायल बंदरिया और उसका बच्चा भी उनके साथ आ मिले, जिन्हें उन्होंने "चिंकी" और "टीलू" नाम दिया। समय बीतता गया और राधेश्याम इन बेजुबान दोस्तों के साथ पूरे दिन हँसी-खुशी बिताने लगे। बेटी को जब यह सब पता चला तो उसने फोन पर गुस्से में कहा कि उन्होंने घर को "चिड़ियाघर" बना दिया है। पर राधेश्याम ने हँसते हुए जवाब दिया कि किरायेदार नहीं, रिश्तेदार रख लिए हैं। दो-ढाई साल इसी तरह गुज़रे। एक दिन जब झबला ने सैर के लिए उन्हें जगाया तो राधेश्याम नहीं उठे। झूरी ने उन्हें चाटकर जगाने की कोशिश की, और झबला ने शोर मचाया, जिससे सभी जानवर इकट्ठा हो गए। चिंकी बंदरिया पास वाले घर में जाकर राहुल को खींच लाई। राहुल ने देखा तो डॉक्टर को बुलाया, पर डॉक्टर ने बताया कि राधेश्याम नहीं रहे। बेटी और दामाद खबर सुनकर तुरंत भारत आए। उन्होंने देखा कि राधेश्याम के सभी पक्षी, जानवर दुखी होकर उनके पास बैठे हुए हैं। गिलहरी उनके माथे को सहला रही थी, चिड़ियाँ चोंच से उनके मुँह में पानी डाल रही थीं। यह दृश्य देखकर श्रुति की आँखों से आँसू बह निकले। श्मशान घाट पर भी राधेश्याम के इन बेजुबान साथियों ने उनका साथ नहीं छोड़ा। चौथे दिन के बाद, श्रुति ने निर्णय लिया कि इस घर को जीव-जंतु संरक्षण केंद्र में बदल दिया जाए, ताकि हर प्रजाति के घायल और बेसहारा प्राणियों को यहाँ संरक्षण मिल सके। उन्होंने इसका नाम रखा "राधेश्याम के रिश्तेदार"। अब इस घर में हर तरह के जीव-जंतु सुरक्षित और स्नेहपूर्ण वातावरण में रहते हैं।

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