मोहन रोज की तरह अपने तीन दोस्तों के साथ स्कूल से घर लौट रहा था कि अचानक उसे किसी लड़की की चीखने की आवाज सुनाई दी—“बचाओ... बचाओ...” मोहन बिना समय गवाएं उस दिशा में दौड़ा। वहां जाकर उसने देखा कि चार लड़के एक लड़की को घेरे खड़े हैं। लड़की के फटे कपड़ों को देखकर मोहन को समझते देर नहीं लगी कि मामला क्या है।
मोहन ने गुस्से से उन लड़कों की तरफ देखते हुए चिल्लाया, “कुत्तों... छोड़ो मेरी बहन को!” मोहन की आवाज सुनते ही उसके तीनों दोस्त भी उसकी तरफ दौड़े। यह देख उन चार बदमाशों में से दो तो तुरंत भाग गए, और बचे हुए दो को चारों ने मिलकर ऐसा सबक सिखाया कि वे भी अधमरे हालत में भाग खड़े हुए।
मोहन ने उस डरी-सहमी लड़की को देखा, जिसके कपड़े बुरी तरह फटे हुए थे। उसने तुरंत अपनी शर्ट उतारकर लड़की को दी और उसे दिलासा देते हुए कहा, “घबराओ मत बहन, तुम्हारे चार भाई तुम्हारे पास हैं।” उसने अपनी पानी की बोतल से लड़की को पानी पिलाया और पूछा कि वह कौन है और कहां रहती है। मोहन की बात सुनकर उसके दोस्त हैरानी से उसकी तरफ देखने लगे।
मोहन ने अभी-अभी इस लड़की को अपनी बहन कहकर बदमाशों से लड़ा, और अब उससे उसके घर का पता पूछ रहा था। उनके मन में सवाल थे कि आखिर मोहन का लड़की के साथ यह रिश्ता क्या है?
तभी लड़की ने सिसकते हुए बताया कि वह पास की बस्ती में रहती है और काम की तलाश में सड़क किनारे खड़ी थी, तभी इन लड़कों ने घर में बर्तन मांजने का काम दिलाने का बहाना बनाकर उसे यहां बुलाया था। यह कहते ही लड़की फिर से रोने लगी। मोहन ने उसे दिलासा दिया और कहा, “चलो बहन, मैं तुम्हें घर छोड़ दूंगा।”
चारों दोस्त उस लड़की को लेकर बस्ती की ओर चल दिए। रास्ते में उन्हें लड़की की मां मिल गई, जिसे देखकर लड़की ने पूरी घटना बताई। मां-बेटी दोनों की आंखें भीगी हुई थीं। उन्होंने हाथ जोड़कर चारों का धन्यवाद किया और अपने घर की ओर लौट गईं।
उनके जाने के बाद मोहन के दोस्त उस पर सवालों की बौछार करने लगे। उनमें से एक बोला, “मोहन, वो तुम्हारी सगी बहन तो नहीं थी, फिर भी तुमने इतना बड़ा जोखिम क्यों लिया?”
मोहन ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “सगी बहन नहीं थी तो क्या हुआ, किसी की तो बहन थी। अगर हम उसकी चीख सुनकर भी अनसुना कर देते, तो उसका क्या होता? और सोचो, अगर हमारी बहन भी कभी ऐसी मुसीबत में फंसी हो और कोई उसकी मदद के लिए आगे न आए, तो हम किसे दोषी मानेंगे? मम्मी-पापा ने मुझे सिखाया है कि हर बहन-बेटी की इज्जत करना हमारी जिम्मेदारी है। आज मुझे खुशी है कि मैं एक बहन को बचा सका, और मुझे तुम सभी पर गर्व है कि तुमने भी बिना झिझक उसकी मदद की।”
मोहन की बात सुनकर उसके दोस्तों का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। उन्होंने उसे कंधे पर उठा लिया और बोले, “नाज तो हमें तुझ पर है, मोहन। तेरे जैसी सोच रखने वाला एक सच्चा दोस्त हमारा भाई है।” यह कहते हुए सभी दोस्त उसे गले लगा लेते हैं।
दोस्तों, अगर स्कूल के छोटे बच्चे इतनी बड़ी बात सोच सकते हैं, तो हम क्यों नहीं? हमें भी हर बहन-बेटी की इज्जत और सुरक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहना चाहिए।
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