रीमा जब मायके की चौखट पर पहुंची, तो उसके कदम अनायास ही ठिठक गए। इस बार उसके दिल में अजीब-सी उदासी और खालीपन था, क्योंकि यह पहली बार था जब वह अपने पिताजी के बिना मायके आई थी। बचपन से लेकर हर छुट्टी में पिताजी का इंतजार उसके मायके आने की सबसे प्यारी बात हुआ करती थी। जैसे ही वह घर की चौखट पर दस्तक देती, पापा की आवाज़ गूंज उठती, “अरे रीमा आ गई, जल्दी दरवाजा खोलो।”
माँ ने दरवाजा खोला और उसे गले लगाते हुए पूछा, “लाडो, कैसी हो? सब ठीक है ना?” यह वही माँ थीं जो हमेशा उसके हर सवाल का जवाब ढूंढा करती थीं, जो हर सुख-दुख में उसकी साथी होती थीं। लेकिन आज माँ की आँखों में भी वही खालीपन और थकान झलक रही थी जो रीमा के दिल में थी। पिताजी के जाने के बाद से माँ का आत्मविश्वास मानो खो सा गया था, और अब वे पहले की तरह चहकती और घर में फुर्ती से काम करती नहीं दिखती थीं।
रीमा ने माँ के हालचाल पूछे, और इसी बीच घर के बाकी सदस्य भी उससे मिलने आए। बड़ा भाई औपचारिकता भरे अंदाज़ में हाल-चाल पूछ कर चला गया, और मंझले भाई की बातों में भी पहले जैसा अपनापन नहीं था। रीमा को यह महसूस होने लगा कि यह वही घर नहीं रहा, जहाँ वह अपने आप को सबसे सुरक्षित और सबसे प्रिय समझती थी। पिताजी के साथ का अपनापन, जो इस घर का एक अहम हिस्सा था, अब कहीं खो चुका था। घर का हर सदस्य अपने में खोया हुआ था, मानो सिर्फ एक औपचारिकता पूरी करने के लिए बात कर रहा हो।
रीमा के मन में पिताजी की यादें ताजा होने लगीं। उनके रहते हर बात में एक अपनापन और खुशी का एहसास होता था। वे जब भी मायके आती थी, पिताजी सबको बुलाकर उसका स्वागत करते थे। उसे हमेशा लगता था कि मायके में वह किसी राजकुमारी की तरह खास है। लेकिन आज वह वही अपनापन और वो गर्मजोशी मिस कर रही थी। पिताजी का स्नेह और उनके होने से जो सुरक्षा का भाव था, वह अब गायब हो चुका था।
पिताजी हमेशा उसका ध्यान रखते थे और उसकी हर छोटी-बड़ी जरूरत का ख्याल रखते थे। जब वह ससुराल से मायके अकेली आती थी, पिताजी गाड़ी भेज देते थे, ताकि उसे कोई परेशानी न हो। लेकिन इस बार बड़े भाई ने उसे खुद टैक्सी से आने को कह दिया था। यह बदलाव रीमा को भीतर तक हिला गया। उसे यह समझ आ गया था कि पिताजी के जाने के बाद यह मायका वह नहीं रहा, जहाँ वह अपने लिए एक सुरक्षित जगह और अपनेपन का एहसास पाती थी। अब यह घर सिर्फ यादों का संग्रहालय सा बन गया था, जहाँ उसकी पुरानी खुशियाँ और उसके प्यारे पलों की दुनिया बसती थी।
पूरा सप्ताह ऐसे ही औपचारिकताओं और कुछ खामोश पलों में बीत गया। वह मायके के एक-एक कोने को देखती रही, जहाँ उसकी हंसी, उसका बचपन, और पिताजी की यादें बसी थीं। लेकिन अब वो सब सिर्फ स्मृतियों में रह गए थे। पिताजी के जाने के बाद माँ और भाई-भाभियों के बीच भी एक औपचारिकता-सी आ गई थी। अब यह घर वह जगह नहीं रहा जहाँ हर बार आकर वह नयी ऊर्जा से भर जाती थी।
जब वापस लौटने का समय आया, तो बड़े भाई ने उसे स्टेशन तक छोड़ दिया और औपचारिकता से विदा ली। रीमा ने ट्रेन की खिड़की से बाहर झांका, तो उसकी आँखों में पिताजी की वह छवि उभर आई, जब वे हमेशा उसकी ट्रेन के जाने तक वहीं खड़े रहते थे, हाथ हिलाते थे, और उसकी सुरक्षा का आशीर्वाद देते थे। आज रीमा को महसूस हुआ कि माँ-बाप ही किसी बेटी के असल मायके को जीवित रखते हैं। उनके बिना मायके का हर कोना वीरान हो जाता है। उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
रीमा समझ चुकी थी कि माँ-बाप का होना ही मायके को मायका बनाता है। उनकी गैरमौजूदगी में वह स्थान केवल यादों का संग्रह बनकर रह जाता है। वह मायके से लौटी तो ज़रूर, लेकिन इस बार वह अपने साथ एक गहरी समझ और वास्तविकता का एहसास लेकर जा रही थी।
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